________________ सटीक भक्ता- संभृतान कुंभान् // युवराजपुरोढौकय-दीप्रिया यदिभोर्वश्याः // 17 // भगवन प्रसारय करौ / / निस्तारय मां गृहाण योग्यममुं / इत्युक्तंजलिमृषभो-कृत सोऽपि ददौ घटेकुरसं // 15 // अ. बिद्रपाणिरहेन / नापतदवनौ तथेवरसविंधः // याति शिखा यदि शशिनं / तीर्थकृतोऽतिशयतो न | पतेत् // 20 // दिवि दुगयो नेदु-र्जुघुषुरहो दानमर्जुन ववृषुः // रत्नकुसुमादि मुमुचु-जह. घुर्ननृतुश्च देवगणाः // 21 // अंतर्हिताशन विधौ / भगवति गतवति कृतं पदस्थाने // तेनादौ कृ. तं मंडल-मन्यैश्च रवेः क्रमाप्रथितं // 15 // स्वप्नत्रयं पुरोदित-मभृच्च सत्यं जिनेंद्रपारणकात् / / | सोमप्रभोऽपि हृष्टः / स्वसुतं दृष्ट्वा सुरान्निनुतं // 23 // बागबत्कबादीना-ममिलच्च जनाग्रतश्च जिनवृत्तं // थाहारविधिमचीकथ–दात्मचरितं च युवराजः // 24 // ईशाने ललितांगः / स्वयंप्रना प्राणवल्लचा प्रथमं / / राजाथ वज्रजंघः / श्रीमत्या कांतया श्रीमान् // 25 // अथ युगलिनी च देवी / जीवानंदश्व केशवो मित्रं // अच्युतसुरौ च राजेंद्रो / वज्रनाभश्च सूतश्च / / 16 / / सर्वार्थसिखदेवौ / गुरुदेवो नानिनंदनो विदितः / / प्रथमजिनोऽजनि चाहं / श्रेयांसः सुयशसो जीवः / / // // 27 // अष्टज्वप्रतिबछ-स्नेहोऽहं नवमके ततो नायं / / दृष्ट्वा जातिस्मृत्या / झातेयं तीर्थकः / /