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________________ माय पिय सुअ सहोयर पमुहाउकुणंति तंन उवयारम्॥ जं निक्कारणकरुणापरो गुरुकुण जीवाणम् // ततोऽसौ प्रत्यहं जैनमुनीनाकार्य भक्तितः ॥अन्नपानादिभिःस्नेहात् प्रतिलाभयति स्वयम् // 7 // Ka शुभश्चित्तादियोगस्तु सर्वसिद्धिकरः सदा // दानस्य समये भाग्यात् प्राप्यते एव सजनैः // 78 // केसिपि होइ चित्तं वित्तमन्नेसि मुभय मनोसिम्॥चित्तं वित्तं पत्तं तिन्निवि के सिंच धन्नाणम् // 79 K सैवमुपार्जयामास केवलं शुद्धभावतः // मानवभवसंबंधिभोगफलक्रियाः शुभाः // 8 // hd अन्यदा राजपुत्रस्य स्वोद्याने क्रीडतोऽस्य च // इतस्तत्र समायाता श्चत्वारो मिलिता नराः॥८॥ - वार्तालापं कुमारश्च करोति सह तैस्तदा // तैः प्रोक्तं हे कुमारेन्द्र शृणु स्वस्थेन चेतसा // 8 // | स्वभाग्येनैव भूपात्र जीवंतः स्मः समागताः // कथ मुक्तं कुमारेण प्राहुस्ते विनयान्विताः // 8 // |श्तो दूरेऽस्ति वेतालपुरं च पंचयोजनम् // वेतालसदृशा स्तत्र महाहिंसापरा जनाः // 8 // तत्रैका वर्तते देवी नृमांसशोणितप्रिया // सा महिषादि दातृणां पूरयतीप्सितार्थकम् // 85 // Raसा चातिप्रौढकार्येषु नृबलिं याचते जनान् / / मूल्येन गृह्यते बन्दिग्राहिपान्निरस्तदा // 86 // Ea तदर्थ धियते तत्र वैदेशिको बलेन वा // एवंविध मजानाना वयं तत्र पुरे गताः // 7 //
SR No.600423
Book TitleSadaivvatsakumar Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar, Manishankar Chaganlal Shastri
PublisherRatilal Keshavlal
Publication Year1932
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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