________________ एवं तस्मिन् गते पुत्रे विदेशे च मृते गजे // राज्यं बभूव निःसार मुजयिन्या महीपतेः // 90 // - न दीर्घदर्शिनो यस्य मंत्रिणः स्युर्महीपतेः॥ क्रमायातश्रियस्तस्य ह्यचिरात् स्यात् परीक्षयः॥१॥ मंत्रिरूपा हि रिपवः संभाव्यास्ते मनीषिभिः // यःसन्नयाय मुत्सृज्य नृपं कूटन सेवते // 12 // तस्याथ बलहीनत्वं ज्ञात्वा सीमालराजभिः // मिलित्वा तत्पुरीरोधः कृतोऽस्ति देव सांप्रतम् // 13 // PE तस्मानिर्गमने कोऽपि चागमने क्षमो नहि // तेन चिंतातुरोऽतीव प्रभुवत्सश्च भूपतिः // 9 // 15 स किंकर्तव्यतामूढः पुरीमध्ये स्थितोऽधुना // वाहयत्यतिऽकष्टेन निजदिनानि शोकतः // 5 // जयसंत्रस्तमनसा हस्तपादादिकाः क्रियाः // प्रवर्तते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवेत् // 96 // वैरिनृपाश्च ये सर्वे नगर्याः परितः स्थिताः // कोशक्षयं च कुर्वन्ति पुर्यतरगता जनाः // 17 // a कोशव्ययो न निद्रा च न विलासेषु च स्पृहा / विग्रहासक्तचित्तानां रतिः क्वापि न जायते // 98 // आयांति यांति च परे ऋतवः परत्र, तस्मिन् पुरे तु ऋतुयग्म मगत्वरं हि / वीरेण तेन सदयेन विना | जनानां, वर्षा विलोचनयुगे हृदये निदाघः // 19 // | तस्मिन् पुरे च हे राजन्नेवं व्यतिकरो महान् // अत्रागां खालमार्गेण निर्गत्य ह्यो दिने निशि // 940 //