________________ जोजस्सकएघडिऊ संघडइसुदूरगोविसोतस्स / वच्चंतिविंझगिरि संभवावि रायंगणे करिणो // 1 // सीलवाहनराजेन करस्य मोचने ततः / तस्मै गजतुरंगादि दत्तं सुबहुमानतः // 64 // तत्पश्चातसदयस्तत्र बहुकोटीधनव्ययात् / नामधेयं स्वकीयं स संस्थाप्य कमशः पुरम् // 65 // - स्वकीयमाजगामाथ चक्रे राज्ञा महान् महः / प्रवेशाय सुवीरस्य बहुधनव्ययेन हि // 66 // ततोऽनुरूपदारैश्च राज्यलीलां सुखेन वै / पितुश्चबहुमानेन सोऽनुभवति चोत्तमाम् // 67 // द्युतासक्ताय तस्मै च ह्येकदा धीरबुद्धिना। धनव्ययविधानेन ह्यस्थानेकृतवानतः // 68 // जिदूनत्वेन कुमाराय शिक्षाचहितकांक्षया / भूपतिना प्रदायीति यतो राज्यं स्थिरं भवेत् // 69 // वत्स नो वेत्सि किं राज्यं बहुकार्यनिरंतरम / स्वार्थंककरणव्यग्रपरिवारसमावृतम् // 70 // सावधानतया चिंत्यं करंडस्थभुजंगवत् / नियंत्रणियं कपिवद्गुणैः स्थानांतरंबजत् // 71 फलितक्षेत्रवन्नित्यं रक्षणीयं प्रयत्नतः / नव्याराम इवस्थित्या सेवनीयं मुहर्मुहः // 72 // अनीतिजलकल्लोलै रुच्छाटय क्षणतो ध्रुवम् / व्यसनाख्योनदीपूर पातयेद्राज्यपादपम् // 73 // एतदेवहि पाण्डित्यं यदा तदाल्पको व्ययः / अत्रोदाहरणं स्पष्टं मुनिनाथकमंडलुः // 74 //