________________ II प्रबमस्कन्धे सर्गः 15 II नल-दमयन्त्योर्विरहाग्निः॥ // 29 // II III ISIAllIFILAIII TERI AIST वयस्यथ गते तस्मिन् वयस्यभिनवे नृपः / वयस्यसहितस्तस्थावयस्ययमिवाहितः // 8 // स मञ्जन् विरहाम्भोधौ राजा निरवलम्बनः / हंसमेव स्मरंश्चित्ते प्रललाप प्रियंवदः // 9 // शत्रुर्दहति संयोगे वियोगे मित्रमप्यहो!। उभयोर्दुःखदायित्वे को भेदः शत्रुमित्रयोः ? // 10 // इत्यादि विविधं जल्पन निषधानामधीश्वरः / पुरप्रवेशविद्वेपी निनाय दिवसान् वने // 11 // दमयन्ती च तत्कालं मदनजरजर्जरा। न म मिचिद्विजानाति गृहीतापि गृहं ततः // 12 // सा तमेव दिवानक्तं दिवि दिक्षु विदिक्षु च / पश्यन्ती नलमेवैकं मेने नलमयं जगत् // 13 // निःशृङ्गारा निराहारा निर्विनोदा निरुद्यमा / जीर्णारण्यं जगन्मेने भैमी विरहविह्वला // 14 // अङ्गीचकार नाकल्पं न तल्पं प्रत्यपद्यत / मजनं वर्जयामास सज्जनं नाललाप च // 15 // विलोक्य रुदती बालां ततस्तदुःखदुःखिताः / भृशमाश्वासयामासुर्वयस्याः साश्रुलोचनाः // 16 // नलिन्यामिव मनायां तस्यां मोहमहार्णवे / वयस्यावृन्दमागत्य चक्रन्द कुररीगणः // 17 // उदकमुदकं वायुर्वायुर्वतासनमासनं भजत भजत च्छवं छत्रं च सिश्चत सिञ्चत / इति सरभस भीतभ्राम्यत्सखीमुखसंभवस्तदनु तुमुलो लोलः कोलाहलः सुमहानभूत // 18 // इत्थमुत्थितशुचां मृगीदृशामीदृशं कलकलं निशम्य तम् / मन्दिरं दुहितुराययौ जवात् कातरः किमपि भीमभूपतिः // 19 // II ATFII IASII 29 //