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________________ * +++ CCCCॐ 4% | करीने दीक्षा लीधी. / / 63 // विरराज स राजर्षिस्तपस्तपनतेजसा / ततोऽगादिवमुद्दामसंमदामृतदीपिकाम् // 64 // | पछी ते चंद्रराजर्षि तपरूपी मूर्यना तेजथी दीपवा लाग्या, अने त्यारपछी अति हषरूपी अमृतनी वाव सरखा देवलोकमां ते गया. विवर्धिष्णुविरोधोमिदुर्धरौ तो तु सिन्धुरौ / आय दुःखसरसास्वादकरकं नरकं गतौ // 65 / / अर्थ:-विशेष प्रकारे वृद्धि पाममा बैरना मोजांओथी उद्धत थयेला ते बन्ने हाथीओ तो, दुःखरसना स्वादना भाजन (कर्मPण इलु) सरखी पेहेली नरकमां गया. / 65 / तदुवृत्तौ च तो लब्धजन्मानौ पापयोनिषु / अनन्तभवसंतप्तात्मानौ संचरतोऽभितः // 66 // अर्थः-पछी त्यांची निकळीने तेओ बन्ने दुष्ट योनिओमां जन्म लेइने, अनंता भवोमा दुःखो सहन करताथका चोतरफ भ्रमण करवा लाग्या.॥ 66 / / चन्द्रजीवस्तु स स्तुत्यं भुक्त्वा स्वर्गसुखं चिरम् / लब्ध्वा शुद्धमनुष्यत्वं खामी सिद्धित्रियोऽभवत् 67 अर्थ:-ते चंद्रराजर्षिनो जीव तो प्रशंसनीय स्वर्गसुख ने घणा काळसुधी भोगवीने, निर्मल मनुष्यभव पामी मोक्षलक्ष्मीनो मालीक थयो अमुं दृष्टान्तमाकर्ण्य मुक्तिसंप्राप्तिकारणम / अहिंसासेवकैर्भाव्यमिच्छद्भिः शिवमात्मनः // 68 // अर्थः-मोक्षनी प्राप्तिना कारणरूप, एवं आ दृष्टांत सांभळीने पोतार्नु हित इच्छनारा पाणीओए अहिंसावतने सेवनारा थq.६८ ॥अहिंसाव्रतउपर मूरचंद्रचरित्र संपूर्ण // A4-% -- A -400 4
SR No.600421
Book TitleSurchandra Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1935
Total Pages18
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size1 MB
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