________________ * चरित्रं // 12 // // 12 // सूरचंद्र अर्थः-(पछी) ते मूरकुमारनो जीव तेज वनमा मिल्लपणु पाम्यो, त्यां शिकारथी वृदि पामेला पापवाळा एवा तेने तेज दीपडाए मारी नाख्यो. // 53 // सोऽपि द्वीपी हतः कोपाटोपान्धेस्तस्य बन्धुभिः / तावभूतामुभौ शैलवने तत्रैव पोत्रिणौ // 54 // अर्थः-क्रोधना आवेशथी अंध थयेला तेना भाइओए ते दीपडाने पण मारी नाख्यो, पछी तेओ बन्ने तेज पर्वतना वनमा | वराहो थया. // 54 // तत्र त्रिवत्सरो व्यक्तमत्सरौ तौ परस्मरम् / संग्रामव्यसनव्यग्राववधील्लुब्धकवजः / / 55 // ___ अर्थः-त्यां त्रण वर्षोनी उमरवाळा, प्रगटपणे द्वेष राखनारा, अने परस्पर लढवाना व्यसनमा आसक्त थयेला, एवा तेओ बन्नेने शिकारीभीनी टोळीए मारी नाख्या. // 55 // .. ततोऽन्यतो वने कापि मृगावभवतामुमौ / तथैव प्रथितद्वेषसमरौ शयरोऽवधीत् // 56 // ___अर्थ:-पछी कोइक बीजा वनमा तेओ बन्ने हरिणो थया, तथा तेवीज रीते द्वेषथी लडी मरता एवा तेभो बनेने (कोइएक) | मिल्ले मारी नाख्या. // 56 // गजपोतावथैकस्मिन्गजयूथे बभुवतुः / युध्यमानौ च तो यूथभ्रष्टौ भिल्लगणोऽग्रहीत् // 57 // | अर्थः-पछी कोइ एक हाथीना टोळांमां तेओ बन्ने हाथीना बच्चा थया, अने त्यां (परस्पर) लडता थका टोळांथी विखूटा हैपडी जवाथी तेओ बन्नेने मिल्लोनी टोळीए पकडी लीघा. // 57 // ASSESSERINA NAGARI--.