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________________ SAGAR अ०-जेवामां तेओ बन्ने (बहार) नीकळ्या, तेवामां आगळ रहेला लोकोना ते म्होटां टोळांए " कूवामांची जोडकुं नीकळ्यु " एम कोलाहल कर्यो. // 34 // तच्छब्दात्कौतुकी सार्थवाहोऽपि द्रुतमागतः। सुतां पतियुतामग्रे पश्यन्मनसि विस्मितः // 35 // अ०-ते कोलाहलथी ते कौतुक जोवानी इच्छावाळो ते सार्थवाह पण तुरत (त्यां) आव्यो तथा आगळ (पोताना) पति सहित Puc // पुत्रीने जोइने मनमां आश्चर्य पाम्यो. // 35 // धनाख्यं जिनदासोऽपि सार्थवाहं निरीक्ष्य तम / श्वशरोऽयमिति ज्ञात्वा नमश्च चमकती अ०-जिनदासे पण ते धन नामना सार्थवाहने जोइने, आ तो मारा ससरा छे, एम जाणीने आश्चर्य पामी नमस्कार कर्यो. // ननाम नितरां प्रीत्या पितरं रत्नवत्यपि / अहो भाग्यस्य सौरभ्यं चिन्तयन्ती स्वचेतसि // 37 // अ०-अहो! भाग्यनी केवी खुबी छे? एम पोताना मनमां चिंतवती रत्नवतीए पण अत्यंत आनंदथी (पोताना) पिताने नमस्कार कर्यो. अथास्मै सार्थवाहाय किमेतदिति पृच्छते। जिनदासः स्ववृत्तं तदादितोऽपि न्यवेदयत् // 38 // अ०-पछी आ ते शुं थयु? एम पूछता ते सार्थवाहने ते समये जिनदासे पण पोतानुं वृत्तांत पहेलेथी कही संभळाव्यु. // 38 // तादक्स्वजनसंपर्कनिपीतव्यापदूर्मयः / अथ ते तोषपोषेण तस्थुर्वसनवेश्मनि // 39 // COACEबर
SR No.600419
Book TitleSumitra Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhshil Gani
PublisherHiralal Hansraj Pandit
Publication Year1934
Total Pages22
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size2 MB
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