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________________ चरित्रम्. अघटकु. // 12 // 66360 HARUSLAH SIASAASAS सोऽहं महिषजीवस्तु श्रुत्वा धर्म तदा तथा। विरक्तोऽनशनान्मृत्वा राजा सुघटितोऽभवम् // 290 // भवन्तं प्रति तेनाऽभूद् विरुद्धं मम मानसम् / 'बन्धूनामपि यद्वा स्याद् वैचित्र्यं पूर्ववैरवत् // 291 // तवोपकारिणश्चैते सर्वे प्राक् सुहृदोऽभवन् / तत्तद्भूपत्वमापन्नाः सम्प्रति खखकर्मभिः // 292 // | इत्याकर्ण्य गुरोर्ध्यायन् जातजातिस्मृतिर्नृपः / प्रत्यक्षमिव निःशेषं खवृत्तान्तं व्यलोकयत् // 293 // अथेत्याख्यत् क्षमाऽध्यक्षस्त्वद्गीर्दीपिकया प्रभो!। अज्ञानध्वान्तरुद्धाक्षोऽप्यात्मप्राग्भवमैक्षिषि // 294 // ततः सपरिवारोऽपि गुरुपादान्तिके नृपः / प्रपेदे देशविरतिं तरीमिव भवाम्बुधेः // 295 // क्रमेण सर्वविरतिं सम्प्राप्य सोऽनवद्यधीः / क्षतनिःशेषकर्तव्यः परमामाप नितिम् // 296 // अघटनरपतेः प्राग्भवीयं निशम्य / चरितमिति निमित्तं सम्पदामापदां च // कुरुत निरतिचारे धर्मकर्मण्युदारे / मतिमिह विपदोऽमूर्यन्न वः स्युः कदापि // 297 // पापैरयं सुघटितक्षितिवल्लभोऽपि / प्राप प्रसिद्धसुत-राज्यवियोगदुःखम् // एकोऽप्यगण्यैरघटस्तु पुण्यैः / प्राज्यं समासादयति स्म राज्यम् // 298 // // इति अघटकुमारचरित्रम् / // 12 //
SR No.600405
Book TitleAghatkumar Charitram Pramade Nirdravyaviprakatha Punyaprabhave Siddhadutta Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManchand Velchand
PublisherManchand Velchand
Publication Year1917
Total Pages40
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size3 MB
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