________________ ** वालकहा सिरिसिरि // 176 // ** ** एगाए गणियाए गहिऊणं नट्टगीयनिउणाए / तह सिक्खविआ य अहं जह जाया नहिया निउणा // 971 // महकालनामएणं यन्यरकूलस्स सामिणा तत्तो। नडपेडएण सहिया गहियाऽहं नाडयपिएण // 972 // नाणाविहन हिं तेण नच्चाविऊण धूयाए / मयणसेणाइ पइणो दिन्ना नवनाडयसमआ // 973 // | नृत्ये गीते च निपुणया एकया गणिकया-वेश्यया गृहीत्वा अहं तथा तेन प्रकारेण शिक्षिता च यथायेन प्रकारेण निपुणा-दक्षा नत्तकी जाता / / 971 // ततः तदनन्तरं महाकालनामकेन बबरकुलस्य स्वामिना नटपेटकेन-नटसमृहेन सहिता अहं गृहीता, कीदृशेन महाकालेन ?-नाटकप्रियेण-नाटकं प्रियं यस्य स तेन // 972 // तेन राज्ञा नानाविधैः-बहुपकारनत्यनर्तयित्वा मदनसेनाया निजपुत्र्याः पत्ये-भत्रै नवभिर्नाटकैः ९७१-अत्र सुरसुन्दर्या निपुणनटीत्वे नृत्यगीतनिपुणाया गणिकायाः शिक्षणस्य हेतुतयोपादानात् काव्यलिङ्गमलङ्कारः। ९७२–महाकालस्य तदीयग्रहणे नाटकप्रियतायाः कारणतया काव्यलिङ्गम् / ९७३-स्पष्टम् * *** // 176 // .2379