________________ श्री द जयन्ती-1 प्रकरणवृतिः / तया // 78 // MARAC% नियजणणिभयणिसयणाइगाई पेच्छसु जहिच्छाए // 126 // आएसोत्ति भणेउं सद्धिं सो सिटिणा गओ गेहं / हाणाइ-3 मिलिता गउरवेण तो भुत्तो दिवमाहारं // 127 // भुत्तुत्तरं इमस्स उ सुयंधतंबोलरंजियमुहस्स / भंडारं कोहारं सिही दंसह सुविस्थाएं * स्वभगिनी ॥१२८॥सम्माणदाणखाणासणेहिं सयणेहिं सुयणवयणेहि। सो तत्थ वीरभद्दो गयंपि कालं न याणेइ / / 129 / / पुनाणुवंधि- विनयवती. पुनोदएण भुवर्णपि तस्स नियभवणं / सबोवि जणो सयणो सुयणो सो दुञ्जणो जोवि / / 130 // कुलपच्चयाउ तत्तो कित्ती गंग व पसरइ खमाए / परमहिमगिरिवराओ अइसयगुरुपउमहरयाओ॥१३१ // अवि मित्तमंडलगओ पडिपुत्रकलाकलावपरिकलिओ। कथितं सो सोहइ कंतीए विम्हयकरसोममुत्तीए // 132 // अन्नम्मि दिणे वियसियअच्छं वरवत्थरइयनेवत्थं / विणयवई नियभयणिं | राजपुत्र्यपिच्छइ संपट्ठियं एसो // 133 // तं पुच्छइ विम्हइओ कहिं तुम बहिणि ! पट्ठिया ? इहि / वियसियमुहारविंदाणुमेयअञ्चत. नङ्गसुन्दरीहरिसेण // 134 // सा भणइ मज्झ बंधव ! रायसुयाणंगसुंदरी अत्थि / निद्धसही तो तीए दंसणसुहलालसा जामि // 135 / / स्वरूपम्। सा कि ? कन्ना उवणजोबणपसरंतरूवलावन्ना / परिचियकलाकलावा पुन्निमससिमुत्तिरमणीया // 136 / / पुच्छइ पुणो वि एवं वियगुट्ठीण उच्छुलट्ठीण / सा किंतु जम्मभृमी सरसा सुसिणिद्धसब्भावा / / 137 // तो जंपड विणयबई बंधव ! सा रूवसंपदुक्करिसा / तियसीण दप्पहरिणी सक्खं नजइ मयणघरिणी // 138 // पीऊससारिणीए करणि सा वहइ महुरवाणीए / चउरुत्तिजुत्तिमुत्तियफलाण खीरोयल ब्व // 139 // अनं च-अप्पाणुमाणवित्राणरूपगुणरयणरोहणगिरिन्दा / न हु संभवंति पुरिसा परिणयणं नेच्छइ तो सा // १४०॥जओ-'अवियड्डपई पोढंगणाण सुगुणाण निग्गुणो सामी / चाईण तुच्छविहवो तिनिवि गरुयाई दुक्खाई // 141 // एएणत्थेणं पिय पियराण सुदुस्सहं दुहं सीए / का अना कमाए गई इविअत्ति ? 12 // 78 // 44564526