________________ A श्री जयन्ती प्रकरणपतिः / बलिकत्वे द्रढप्रहारिदृष्टान्तः। A // 288 // AAAAAAAG अइकन्तभुत्तिवेलो अलद्धभिक्खो खुहाए अक्कन्तो। कोहानलपञ्जलिओ चलिओ वेभारगिरिहुत्तं // 9 // गिरिमेहलमारूढो सिलमुवरिं पाडिऊण चुरेमि / एवं अदिन्नदाणं सबंपि जणं विलसमाणं // 10 // इय चिन्तिऊण दमगो महासिलं चालिउं न सक्केइ / तप्पुरओ द्वाउणं दुट्ठो हिट्ठा खणइ तयणु // 11 // तो इसि सिलाचलणे सदं सोऊण सयलपुरलोओ। अवसरइ तणएसा सोऊण तीए उवद्दविओ॥१२॥ एयारिसाण पावाणुबन्धिपावाण दुट्ठजीवाण / अबलत्तं चिय अमेसि होइ कल्लाणहेउत्ति // 13 // सो पुण दमगो पश्चिन्दियाण जीवाण घायपरिणामो / नरयपुरपहे पहिओ रूद्दज्झाणो लहुं होइ // 14 // ॥दुर्बलिकत्वे द्रमकाख्यानकं समाप्तम् // __ सद्धर्मणां पुनः बलिकत्वं श्रेयो, यतः सद्धर्मणो हि बलिष्ठाः कर्मारिवर्गपराभवप्रभविष्णवो विष्णव इव क्षमामात्मसात्कुर्वाणाः परां निवृत्तिमासादयन्ति, द्रढपहारिवत् / तहाहि नयरे लच्छीनिलए सोमे निवम्मि नीइजुन्हाए। दुरुज्झियसंतावे लोए कुवलयसिरीसहिए // 1 // होत्था माहणपुत्तो एगो धूमद्धउ व तावकरो / आरक्खियपुरिसेहिं नयरा निवासिओ दूरं / / 2 // दोसाणं कुलभवणं उत्तमलोयम्मि हाणमलहन्तो / चोराणं पल्लीए अल्लीणो पल्लिनाहस्स // 3 // तो देसगाममण्डलघायणदिड्वचित्तयं तयं नाउं / पल्लीवाणा दुविओ दढपहारित्ति नामेण // 4 // सवाणवि चोराणं स सम्मओ पावकम्मरसियाणं / रंगकरि च्चिय मित्ती समाणसीलाण जं होइ // 5 // ततो दढप्पहारी कहावसेसम्मि पल्लिनाहम्मि / अइकरसूरबलियत्तणेण पल्लीवई जाओ // 6 // पावाणुबंधिपुनो सुनीयचरिओवि पावयत्तेण / जमुणा गंगासंगमजलं व लोए पसिद्धो सो // 7 // एगम्मि सन्निवेसे रिद्धिस्थिमियम्मि तेण -%%A5 // तो देसगाममण्डलमा / रंगकरि चिया // 6 // पावाणुन // 288 //