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________________ जयन्ती प्रकरणइतिः / CAR जागृता | धम्मिजना श्रेष्ठा इत्व | श्रीआर्य रधितोदाहरणम्। // 280 // // कालसौकरिकथानकं समाप्तम् // सूत्रंएयविवरीया पुण सज्झायपरा जियंदिया धीरा / धम्ममि रजमाणा ते साह जागरा पवरा // 21 // व्याख्या-एतद्विपरीताः पुनर्ये साधवः स्वाध्यायपरा जितेन्द्रिया धीरा धर्मे रजमानास्ते जागरूकाः प्रबराः / स्वाध्यायो हि साधूनां प्रशस्तं ध्यानं, अनादिभवाम्यस्तारौद्रध्यानप्रहाणप्रधान, तस्माच्च प्रवर्तते सर्वपरमार्थज्ञानम् / तत्र हि वर्तमानः प्राणी प्रतिक्षणं लभते वैराग्यं मोक्षपुरप्राप्तिप्रगुणं पंथानम् / तथा स्वाध्यायध्यानकताना हि मुनयः प्रत्यहं विकृतिग्रहणव्यग्रा अपि बाह्यमौदारिकं वपुरांतरं कार्मणं च कृशिमानमापादयन्तः स्वपरोपकाराय प्रभविष्णवो भवन्ति दुर्बलिकापुष्पमित्रवत् / तथाहि-आसी दसपुरनयरं मालवलच्छीविसेसयं तत्थ / होत्था अत्थसमिद्धो विप्पवरो सोमदेवोत्ति // 1 // तस्स य घरिणी धरिणीकरणिं परिहवा निच्चलत्तेण / जिणसासणे खमाहर-भारसहा रोदसोमति // 2 // ताण सुओ मेहावी विक्खाओ रक्खिओत्ति नामेण / सुपढियविजाहाणो पाडलिपुत्ता पुरा एइ // 3 // तस्सागमणे हूँ| राया अम्मोगइयाए (सन्मुखगमनेन) गउरवं देइ / विजागहणगुणेणं हिट्ठो सह नयरलोएण // 4 // पाहुडवा वडहत्थो बन्धवसुहिसयणसुयणजणवग्गो / आगच्छइ तस्स घरे अइसयकयदसणुम्माहो // 5 // गेहे धणेण पुढे दिवे हिट्टम्मि सयलसयणम्मि / रक्खियचित्ते चिन्ता जाया जणणी न दिदृत्ति // 6 // तो उद्विऊण तुरियं गिहमज्झे पविसिऊण / आसीणं कूणे जणणिं वन्दइ संभन्तो पुच्छए एवं // 7 // अम्मो मज्झागमणे विजागहणेण रंजिओ PJ लोओ। कीस तुम नाणन्दं वहसिन वा होसि सुपसन्ना॥८॥ महुरक्खरवाणीए जम्पइ जणणीवि ताई सत्थाई। RHOS P // 28 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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