________________ // 203 // श्रेष्ठिगृहे RASHASANSAR तुम्ह भोयणेणं वेयज्झयणं कुणउ सम्मं // 16 // अज्जावयवयणामयसिवा सिद्धिस्स दाणरुइवल्ली। कविलस्स दासीहत्था भोयणदावणफला जाया // 17 // दासीवियाग्गासे सविलासमिहोपयट्टसंभासे। पइदिवसं विसंमे पसरन्तसिणेहसंरंभे // 18 // तरलियवेयभासे दासीकविला से अट्टज्झाणमि सवियासे // 19 // वदृन्तीं दट्टणं दासी सम्भन्तलोयणो कविलो / पुच्छइ पिए ! कुओ ते असमाही वट्टए हियए ? // 20 // तीए वुत्तं पिययम ! निवाइदासीण ऊसवे पत्ते / अहमेव उड्यापरिभूआ तत्थ हो रक्खामि // 21 // तं दुक्खं संकंतं सिणेहभरियमि कविलहिअयंमि / तेणुत्तं दहए ! सुवन ( तेत्रमहं) करिस्सामि // 22 // एवं मह नाणुमयं जीनियसन्देहकारणं जेण / बम्भणवित्तिए जं कल्लाणं तमिह कल्लाणं // 23 // एवं तीए भणिए बम्भणवित्तिए णाणसम्पत्ति / कुणइ पिए ! किंकणयं कत्थ य लम्बइ ? भणइ कविलो // 24 // सा जंपइ इह सिट्ठी सायरदत्तो दियस्स मासदुगं / वियरइ पभाय समये पढमं जो // 25 // सिक्त्यममंतो होइ / मृसणं मह न दूसणं तुझ इह किंपि // 26 // विस्साससरस्सईए दियस्स कक्लिस्स तोसकरणीए / अणुकुल चारिणीए सायरगमणे मणं होई // 27 // एवं विनविओ सो रयणीए // 28 // सिकाऊण // 29 // पच्चुसे पुण नीचो रायसहे डंडपासिवनरेहिं / नयरपहंमि निसीहे एसो दिवोति विनतं // 30 / / दहण कविलमुत्ति लक्खणजुर्ति निवो सह स्नेहो जातः। CINEGGICHARAKAR 203 //