________________ भी बयन्तीप्रकरणवृतिः / 12 विमलेण यदेहे / घोविमलिणं हवइ मा निचं तर अन्ते // 184 // CRECCROCRACॐ होइ // 6 // अन्नं च-एकेण कयमकजं करेइ तप्पच्चया पुणो अन्नो। सायावहलपरम्परवुच्छेओ संजमतवाणं // 7 // एवं दीक्षाविभाविऊण वियरइ तीए पवित्तिणी सिक्खं / वच्छे जुत्तं न हवइ सरीरचीराण चुक्खत्तं // 8 // कायवं वइणीणं चारित्रं चेव स्वीकारे चुक्खयं भद्दे ! / जं जच्छइ सिवसंगमसासयसुहसम्पयमणन्तं // 9 // सूणारंभपवित्तं सरीरचीराण होइ चुक्खत्तं / अजे शिथिलता अणजचरिए पाओसियत्तं तओ होह // 10 // दुसहो विय समणीहिं सहियवो मलपरीसहो भद्दे / / भवसिन्धुजाणवत्तं जेण || आचारे, चरितं हवइ विमलं // 11 // विमलेण चरित्तेणं चंदणरससुरहिअंगरागेण / भमरिव झत्ति केवलनाणसिरी संगममुवेइ // 12 // असुइरसकरणमेहे पुरिसगेहे कहं ? मणुयदेहे / धोविजन्तेवि धुवं, हवइ नहु अज्जे पवित्तत्तं // 13 // पावमलाणं संचय- चालोच्य रित्तीकरणं तु होइ चारितं / धोविजंते देहे तं पुण मलिणं हवइ वच्छे। // 14 // एवं पनवियापि हु तणुवसणखालणमि स्वीकृतोत्तआसत्ता / पिहु वसहिटिया चिट्ठइ पंडरअञ्जत्ति विक्खाया // 15 // निच्चं तवचरणरया सज्झाणज्झाणकाउस्सग्गगया / बाउ- मार्थकल्पे सिया संवसिया सुइरं एगागिणी चेव / / 16 // अह पच्छिमंमि काले पच्छायावेण भवउविग्गा / सम्मं गुरूण अंते उव प्राप्ता ट्ठियाऽऽलोयणं दाउं // 17 // अवितहमालोयचा थूलेयरजीवखामणुज्जुत्ता / सा उत्तमट्ठकप्पं विहिणा पडिवजए तयणु प्रशंसा। // 18 / / पश्चिन्दियदमदन्ता कोहाइकसायनिग्गहपसत्ता / आलोइयपडिकन्ता धम्मज्झाणमि संकन्ता // 19 // धन्नाऽसि तुमं वच्छे सिवमग्गपसाहणमि अइदच्छे / माणससरं व सच्छे लद्धपसंसा समणगच्छे // 20 // दुपरिच्चायमाहारं दसविहपाणाण सुदिढमाहारं / जं चयसि भावसारं करेसि तं जयचमुक्कारं // 21 // एसोत्तमट्ठकप्पो पासाओ तुह चरित्तरायस्स / सन्तोससुहासुदिढो पइक्खणं होउ सुहवासो // 22 // इच्चाइ सुगुरूवाणीसारयससिबिम्बकिरणकुरूलीहिं / कुमुयाकरो व विय- W184 1964