SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ // 17 // प्रसनचन्द्रमुनिवरस्य केवलज्ञानप्राप्तिः। चारित TAGSAAMANAS निहियपहरणरासी चिन्तइ कवएण रिउपायं // 87 // सिरताडणग्गहलालसो करेण पुडंमि मुंडसिरकमले / मवियवयावसेणं सुमरइ सो अत्ति अप्पाणं // 88 // समणोहं किन्तु मए पारद्धं पावकम्मसम्बद्धम् / संजमसारविरुद्धं मज्झ मणो जमिह अइकुद्धं // 89 // कोहो जोहो चारित्तरायसंघायघायणरसिल्लो / रूइज्झाणनियल्लो पसमिरअइकिन्हलेसिल्लो॥९० // संसारगिम्हहारिसामनतववम्भचन्दणदलाई / हा जीव कोवधूमद्धएण तं दहसि सवाई // 91 // हिययत्थलंमि करूणावल्ली उवसमरसेण पल्लविया / ही ही पावेण मया सहसा कोवग्गिणा दड्डा // 92 // दुमुहमुहजन्तनिग्गयदुवयणबोलेहिं मह पुरे सहसा / अहह खमापायारी मग्गो चिरपरिचिओ जइंवि / / 93 // तो मोहरायादप्पिकोहलोहाइबलसमूहेण / नाणचरणाइरिद्धी धिद्धी गहिया समग्मावि // 94 // भवजलहिजाणवतं मणुयत्तं फलयसुगुणसंजुलै / जे चारित्तविउत्तं न हवइ तं पारगमसकं // 95 // मह साहुकुञ्जरस्सवि जो जाओ पुत्तबन्धपडिबन्धो / सो चारित्तवघनिबन्धू नाणाविहबन्धहेऊत्ति // 96 // एवं दुक्कडगरिहाअग्गिसिहाइ बन्धणं व दुक्म्मं / सबंपि दहइ नरवर ! अहुणोपपन्न मुणिन्दस्स // 97 // अस्ति धम्ममाणे | अवसाणे तस्स होइ उववाओ। सबट्ठम्मि विमाणे अजहन्नुकोसठिइट्ठाणे // 98 // किन्तु तया सो साहू अञ्जवि अच्छिन्नाउपरिणामो / पइक्खणपसायपसमिरदयासओ सच्छिओ दए व // 99 / / उल्लसियजीवविरिओ अप्पुवकरणेण वम्मियसरीरो। आरूढखवगसेणी मोहनिवं खवह तो सत्वं // 10 // परमत्थसुक्कज्झाणो निहणइ सो घायकम्मरिउवग्गं / सम्पइ केवललच्छिं सम्पनो सो महासत्तो // 101 // केवलनाणुजोओ लोयालोयपमासओ सम्मं / दुलहोत्ति पूयणिजो मुणिणो महिमं कुणन्ति सुरा // 102 // इय सोच्चा जिणवयणं हरिसभरूल्लसियरोमरूहरङ्गो / सेणियराया गच्छह महरिसिपयवन्दणुम्माहो // 103 // सोचारित संबंपि ACADA RASIC // 103 // // 17 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy