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________________ // 165 क्रोधविषये प्रसनचंद्र मुनि दृष्टान्तः। अहो विवेओ सावयधम्मस्स एयस्स // 33 // जेसि पगइसरूवं रयतममुकं व होइ सत्चहियं / तेसिं गुरूवएसा कहं विवेओ हवइ दुल्लहो ? // 34 // एसो अकुच्छणिो गरूओ कल्लाणसंपयासहिओ। सामच्छिऊण एवं सिरिघरसामी कओ रना // 35 // अह लोहनन्दिसिट्ठी तुरियं गामन्तरा घरं एइ / पुच्छइ पुत्ते वच्छा गहिया तुझेहिं किं कुसया ? // 36 // पुत्तेहिं पडिवुत्तं लोहकुसा ताय ! अइसयमहग्या / किं तेहिं गहिएहिं मुलंपि न जेहि उद्वेइ // 37 // सुणिऊण वयणमिण लोहग्गहगहियमाणसो सिट्ठी / गहिऊण कुर्सि भंजइ पाप तेहि मग्गओ // 38 // इत्थन्तरम्मि रायाएसेणं दंडवासिया पत्ता / ते दिन्ति तस्स मरणं हरणं सबस्स वित्तस्स // 39 // ॥परिग्रहप्रमाणाख्यानकं पञ्चमं समाप्तम् // तथा षष्ट क्रोधपापस्थानकम् / क्रुद्धा हि प्राणिनो विरुद्धाभिसन्धयः कृष्णलेश्यानुविद्धा रौद्रध्यानमापूरयन्तः कार्याकार्यविवेकविकलाः पंचेन्द्रियजीवहत्यां विधाय अधोगतिनिबन्धनगुरुत्वनिमित्तं चिक्कणदुःकर्मलेपमुपार्जयन्ति / तथा चोक्तं-क्रोधः परितापकरः सर्वस्योद्वेगकारकः क्रोधः। वैरानुषंगजनकः क्रोधः क्रोधः सुगतिहन्ता // 1 // कोहो दव व जलिओ दहेह नन्दणवणं व गुणरासिं / जम्मि सुमणोवियासिपरिमलदरीकरणदच्छत्तं // 2 // जीवदय च्चिय मूलं कप्पियफला धम्मकप्पवरतरूणो / कोहखणित्तखयाए कहमक्खयं होइ हु खमाए // 3 // कोहकसायपिसाए वियम्भमाणम्मि भवमसाणम्मि / संतावसोयहेऊ हवइ च्चिय जीवसंहारो॥४॥ कोहंमि समुच्छलिए चलिए चित्तमि पित्तसंवलिए / सम्मदिट्ठिविणासे पडन्ति जीवा भवन्धुम्मि // 5 // दुरुझियजीवदओ जाणं देहमि कोवचंडालो। निवसह नियगेहे इव पवित्तया ताण कह होउ ? 15 1325ECARRORSCREGA 6 // 165 //
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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