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________________ क श्री जयन्तीप्रकरणवृतिः / // 104 // // 25 / / दट्टण सिट्ठिणा सो भणिो कि ? हासपच्चयं पठसि / अरिहंतनमोकार वार( वारमुच्चरिय ) सुभग! // 26 // भणइ | सो बमसुभगो नाहं उवहासेणं पढामि नवकारं / आयासगमणविजाबहुमाणपरवसो किंतु // 27 // सिट्टि ! मए निविडो दिवो स्कारमंत्र. ज्झाणडिओ वणे साहू। भणियं नवकारपयं तयणुप्पइओ गयणमग्गे / / 28 // सोऊणमिमं सिट्ठी तो खाइं पढसु तं परायणो वच्छ ! / संपुन्नं नवकारं अइसयगुणरयणभंडारं // 29 // सुकम्मपरिणईए कडक्खलक्खीकओ तओ सुभगो / हरिसेण या मृत्वा पढइ पुग्नं एसो परमिद्विनवकारं // 30 // एसो पढमो मंतो परमरहस्सं परंपरातत्तं / नाणं पढम नेयं सुद्धं झाणं सिवं | श्रेष्टिपुत्रः नेयं // 31 // हिययकमलविउ चिय झायबो एस सबट्ठाणेसु / सुइभृएणं निहुय पवित्तदेसेसु भणियबो // 32 // इय सुदर्शनो सिक्खादाणेण सरसेणं सिढिकुंजरेणेसो / भमरो व कउलीणो हरिसतरुम्मिन्नरोमंचो // 33 // अह चंदुजलभत्ती नवकारे जातः। तस्स माणसे निच्चं / ( अत्तम्मि ) वियासयंती सुकयं चंदुज्जुयवणं व // 34 // पइदिवसं नवकारं झायतो जाव चिट्ठए एसो / ताव कमेणं पत्तो पाउसकालो जणाणंदो // 35 // एगंमि दिणे तो सो वणा नियत्तोऽवलोयए घोरं / | नइपूरं तो भीओ खणमेगं चिट्ठए जाव / / 36 // महिसीओ तरिऊणं पत्ताओ ताव झत्ति परतीरे / तो अवरखित्त मज्झे पविसंतीओ पलोयत्ता / / 37 // किल गयणगामिणीए विजाएऽहं नहंमि वच्चिस्सं / इय कयअज्झवसाणो उप्पइओ पडइ जवमझे // 38 // धणियं तत्थ य विद्धो सुभगो हिययंमि तिक्खकढिणेण / पुवञ्जियकम्मवसा कलनिच्चलखयरकीलेण // 39 // धारिंतो नवकारं हियए न गणेइ दुक्खसंभारं / हारं व गुणाहारं पार्वितो इव सुहागारं / / 40 // (परमिट्ठिः | मंतेण ) मंगलकलसेण सुकुलमज्झमि / अग्गेसरेण लेसाविसुद्धिकुसुमोवयारेण // 41 // परलोयं संपत्तो सो पुत्तो रिसहदास CARECEICIAL
SR No.600402
Book TitleJayanti Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMalayprabhsuri, Vijayakumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1950
Total Pages338
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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