________________ - तमे सेचनक हस्तिनी पेठे अकृतज्ञ थया छो एम कही कुञ्चिके ते गजनी कथा कही. त्यार पछी मुमिए तेने प्रतिबोध करवा हारनी कथा कही संभळावी. एम परस्पर शेठ अने मुनि बन्नेए आठ आठ कथाओ कही छतां शेठने कशी असर न थइ. भने मुनिने विशेष उपालंभ आपवा लाग्यो. छेवटे मुनिने क्रोध थयो. मुनिए “जेणे तारु धन ग्रहण कर्य होय तेनो नाश थाओ, आयो शाप आप्यो, तपना प्रभाषथी मुनिना शरीमाथी तेजोलेश्या नीकळवा लागी. कश्चिक शेठना पत्रने भय लाग्यो, एकदम मनिने चरणे पडयो अने माफी मागी. अने शेठने कहय के धन मे लीधुं छे, निर्दोष मुनि उपर शामाटे तोहमत मको छो? शेठने घणो पस्तावो थयो, तेणे मुनि पासे क्षमा मागी. मुनि शान्त थया. वैराग्य थवाथी शेठे तेमनी पासे दीक्षा ग्रहण करी. पछी मणिपति अने कुञ्चिक साधु निरतिचार चारित्र पाळी स्वर्गे गण. अने पछी मोक्षे जशे. आ पुस्तक मुद्रित करवा माटे लुहारनी पोळना भंडारना कार्यवाहक पासेथी आ चरित्रनु एक पुस्तक मळ्यु हतु. तेना आधारे संशोधन करी छापषामां आव्यु छे. तो पण दृष्टिदोषथी के बुद्धिमान्धथी के प्रेसनादोषथी कांह मूलचुक रही गइ होयतो वाचको पासे क्षमा याचना करी आ हघु प्रस्तावना समाप्त करु छु. पं० भगवानदास हरखचंद.