________________ प० पू० पन्यासमणिविजजीगणिवरग्रन्थमाला नं. 9 संक्षिप्त // 293 // नेमिजिन भाविजिनेश्वरश्रीअममस्वामिचरित्रे सप्तमः सर्गः / चरित्रम् आमूलमसंख्यैरपि कविभिः खच्छन्दचर्वितरसानि / नेमेरद्यापि जयन्त्यऽचुम्बितानीव चरितानि // 1 // भुवःखःशिवस्खाम्यपत्रला श्रीजिनाभिधाम् / कृष्णो लेभे यतस्तस्य नेमेश्चरितमुच्यते // 2 // आधद्वीपस्य भरते सरसीव रसाश्रये / श्रियोऽस्ति पबवत्सब नामाऽचलपुरं पुरम् // 3 // सप्तभूमैः सार्वभूमैश्वर्याणां यत्र वेश्मभिः / मध्यान्हे सूर्यरथ्यानां क्रियते मन्दुराभ्रमम् // 4 // : खर्गायत्र वृत्रहत्याक्षितेशात ध्रुवं श्रियः। आयान्त्यास्तेनिरे हस्तालम्बं देवगृहा ध्वजैः॥५॥ विक्रमैकधनस्तत्र श्रीविक्रमधनो नृपः। आसी| हासीमिव प्रीणन् सङ्गरैविजयश्रियम् // 6 // कीर्तिगंगा नवा यस्माद्भूधरेन्द्राद् व्यजृम्भत / न वाहिनीशानऽस्तापानऽपि या चकमे कचित् / / 7 // विशुद्धोभयपक्षाऽस्य वसन्ती मानसेऽनिशम् / बभूव राजहंसीव धारिणी सहचारिणी // 8 // रूपामोदरसै रम्यैरधिको मे समोऽपि वा। डमो यद्यस्ति युष्मासु रेरे तब्रूत पादपाः॥९॥ मञ्जरीतर्जनीरित्थमृीकृत्य फलेग्रहीन् / भ्रमद्धमरझङ्कारैराक्षिपन्तमिव दुमान् // 10 // खमे मनोहराकारं सहकारं महातरुम् / अरुणोदयवेलायामन्यदा सा व्यलोकयत् // 11 // त्रि०वि०॥ हस्तस्थितेन ||293 //