________________ श्रीअमम // 86 // जिनचरित्रम् परीक्षार्थ नृपादिष्टकामांकुर|स्योञ्जयनी गमनम् | सती न सम्भवति // 3 // किश्च-असत्योऽपि सतीच्छेकाऽभिनयेन तथा तथा / प्रतारयन्ति पुरुषान् सरलान् कुटिलाः स्त्रियः॥४॥ देवानामप्यगम्येऽस्मिन् स्त्रीचरित्रोरुनाटके / बनस्तत्वधियं देव बालैरपि हसिष्यसे // 5 // किश्चान्यैस्तत्र गत्वा तां शीलात्प्रच्याव्य हेलया। आगच्छाम्यचिराद् देवो मामाज्ञापयतां परम् // 6 // द्रव्यसाध्यमिदं कार्यमित्युक्तो कौतुकान्नृपः / प्रेषीकामाङ्करं स्वर्णलक्षं दत्वा पुरी प्रति // 7 // युग्मम् / / सोऽपि चेतोजवैर्यानै विशालामेत्य सत्वरम् / सुलोचनागृहोपान्ते क्रयेण चाऽग्रहीद् गृहम् / / 8 / / खं रोचयितुमस्यास्तु शिरोगृहगवाक्षगः / तस्थौ न त्वनया नेत्रपथप्राप्तोऽपि वीक्षितः॥९॥ खेल चलन्त्या स्वागारसीम्नि कार्यादितस्ततः / चलचेलान्तरस्तोकदर्शितैकोरुमूलया // 10 // पतिप्रवासान्मलिनवेषयाऽप्यतिरम्यया / स तया दृष्टया सद्यः कामातः प्रत्युतोऽभवत् // 11 // युग्मम् / ततो नाभुक्त नाऽशेत नाऽस्मान्नाऽरमत क्वचित् / तत्संगोपायमन्विष्यन्नतिष्ठत्तु दिवानिशम् // 12 // पुट्टिलाख्यामथ परिवाजिकामुपचर्य सः। ऊचे संघटयखनां कथञ्चिन्मे सुलोचनाम् // 13 // सा प्रोचे व्यर्थमेवाऽयं श्रमो विरम वत्स! तत् / महासती. त्वापस्मारात् साध्या नास्मादृशामसौ // 14 // सोऽवादीदियती तावत्कथञ्चिद् भुवमानय / सा प्रोचे त्वमनुल्लंघ्यवचनोऽसीति गम्यते // 15 // गत्वाऽथ तामवादीत्सा वत्से ! त्वां स्मरविव्हलः / युवा कामांकुरो नाम प्रतिवेशी रिंसते // 16 / / अयं मा म्रियतामा त्वामप्राप्य कुशोदरि! / जीवय स्वांगदानात् तं धर्मो जीवदया यतः॥१७॥ तदेहि तद्गृहं तन्वि ! तं च स्वं च कृतार्थय / शिरसा धारय त्यक्तापमारा स्मरशासनम् / / 18 / / वृथा गमयसे जन्म यौवनं नयसे मुधा / नरान्तररतावादविमुखी केन हेतुना // 19 // आसेव्यमानादसकृदेकान्तमधुरादपि / रसादिव निजात्पत्युर्मातनोंद्विजसे कथम् ? // 20 // कालो याति गलत्यायुः पश्चत्वमुपसर्पति / आः किं तथापि नो मुग्धे ! सतीत्वग्रहमुज्झति // 21 / / किं ? प्रेम हन्त दम्पत्योपैनाचारः स तादृशः / सुखसर्वस्वभूः खैरिण्युपपत्यो // 86 //