________________ // 25 // द्विर्धात्रा त्रातोऽप्यद्य हतो रिपुः / तृतीयोड्डयनैर्दक्षैर्यन्मयूरोऽपि गृह्यते // 44 // मूनि पादं विधेर्दत्वाऽका वाक्यमृषेम॒षा / बलिनां प्राञ्जला एव यन्मार्गा दुर्गमा अपि // 45 // इतः परं सुखी दीर्घ निद्रास्यामि निशास्वहम् / जन्मान्तरमिवापन्नो वृत्तान्तेनाऽमुनाऽस्मि च // 46 // चिन्तयित्वेति स क्रूरः कृत्रिमा दर्शयन् शुचम् / दामन्दक ! हहा पुत्र ! कुत्र निध्यास्यसे पुनः॥४७॥ वदंश्चेति व्रजन्माल्यवनेऽदृश्रेणिमीयिवान् / स्वहट्टे स्वासनासीनमद्राक्षीन्माणिभद्रजम् // 48 // षड्भिः कु० // विच्छायः पद्मवत्सोऽभूत्तं दृष्ट्वेन्दुमिवोदितम् / अथाभ्युत्थाय सम्भ्रान्तं प्रत्युद्यान्तं तमुचिवान् // 49 // क्व क्क सागरदत्तः किं त्वं च तत्र गतोऽसि न ? / अथ दामन्दकः | सर्व यथावस्थितमाख्यत // 50 // मन्ये स्थानेऽस्य मे वत्सो हतः कोऽयं हहा विधिः / यद्वा गत्वा स्वयं वीक्षे स्युमिथ्यापि जनोक्तयः * // 51 // इत्याशया प्रेतवनमिव माल्यवनं गतः। विषाक्रन्दं मृतं पुत्रं शुश्राव च ददर्श च // 52 // हा दैव! किमिदं जातं धिग्मां | निर्भाग्यशेखरम् / वत्स! सागरदत्त ! खं त्यक्त्वैवं मां गतोऽसि किम् ? // 53 // न वेत्सि वत्स ! किं स्थातुं त्वामृते न क्षमे क्षणम् / तदेहि देहि मे जात! दर्शनं किमुपेक्षसे ? // 54 // इत्यादि विलपन शोकदुःखसंघट्टपट्टितः / सञ्जातहृदयस्फोटः पापः प्राप परासुताम् | // 55 // विषा रुरोद द्विगुणं हा तात पुरमण्डन / धिर धिगऽस्मत्कुलोच्छेदः कोऽयमेकपदेऽप्यभूत् // 56 // ज्ञातयोऽप्येत्य चक्रन्दु. श्चक्रुश्चात्र चितां तयोः / तदैव देहदाहं चामुत्र्य स्वस्वगृहान्ययुः // 57 // प्रातर्महाजनस्ताराचन्द्रं व्यज्ञपयन्नृपम् / समुद्रदत्तो नः स्वामी ह्यः सपुत्रो व्यपद्यत // 58 // तत्कोऽधुनाऽस्तु नः स्वामी ? राजाप्यूचे महाजनम् / सगोत्रः सगुणः कोऽपि क्रियतां तर्हि तत्पदे | // 19 // अवदन वणिजो देव न सन्त्यस्य सनाभयः / एकोऽस्ति किन्तु जामाता मर्त्यलोकैकमण्डनम् // 60 // अथ राजा तमानाय्य cell दृष्ट्वा तस्याकृतिं च ताम् / विस्मितो वंशमप्राक्षीत् कथिते मुमुदेतराम् // 61 // पदे समुद्रदत्तस्य स्थापयामास तं नृपः / तस्मै वैश्म // 25 //