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________________ श्रीअमम जिनचरित्रम् // 248 // मिलित सार्थस्य चौरेभ्यो रक्षणम् शीलमंत्रमुद्राविद्रावितैः क्वचित् // 82 // वराहीव पल्वलोत्था स्वेदक्लेदिवपुर्मला / शबरीव लुलत्केशी कंप्रा वातस्थवल्लीवत् // 8 // | करिणीवदवत्रस्ता प्रयान्ती सखरैः पदैः। सार्थमावासित भूरि-शकटं वीक्ष्यते स्म सा // 84 // युग्मम् // दिष्टथाऽयं सुकृतैः सार्थों | | मया लेभेमुना सुखम् / कांतारं दुस्तरं लंघिष्यते पोतेन वाद्धिंवत् // 85 // ध्यायंतीति स्थिता सुस्था सा यावत्वावदुद्भटैः। रुरुधे | तस्करैः सार्थः कुतोऽप्येत्यातिदुद्धरैः // 86 // स्थिरीकृत्याथ सा तेभ्यो बिभ्यतः सार्थवासिनः। आक्षिपत्कुलदेवीव चौरान् रे यात दूरतः // 87 // अहिलेयमिति बुझ्या तद्वचो मेनिरे न ते। यावत्तावत्सा मुमोचाहंकृत्या तेषु हुंकृतीः // 88 // विद्याभिरिव ताभिस्ते गताभिः | कर्णगोचरम् / पलायांचक्रिरे त्यक्तचापला रेपला इव // 89 / / अधिष्ठातृसुरी किं किं खेचरी कृपयात्र नः। अकस्मादागतेयं यच्चौरेभ्यो रक्षणं व्यधात् // 90 // इति स्तुतिधनैः सार्थजनैः सह तदैव सा / अभ्यर्च्य सार्थनाथेन जगृहे खगृहे मुदा // 11 // युग्मम् / / सार्थ * वाहेन मातेति नत्वा पृष्टाऽथ भीमजा / आचख्यावानलधुतात्कृतदुःखप्रथा कथाम् // 92 // उपकारिणीति राजपत्नीत्यपि च यत्नतः। * पुत्रेणेव गृहेऽस्थापि तेन सा स्वे विवेकिना // 93 // तदा तपात्यये व्योम वर्गगाशैवलैरिव / व्यापि तुच्छीकृतोदन्वदौर्वधूमैरिवा* बुदैः // 94 // गर्जातूर्यैस्तडिल्लास्यैर्धाराध्वनिसुगीतिभिः / अनुद्घाटेन शक्रस्य चक्रे यात्रां व्यहं घनः // 95 // भैमी दुःखाश्रुपूरस्य स्प या हृद्विमेदिनः / प्रसस्नुः पयसां पूरास्तटिनीतटभेदिनः // 16 // वियोगिनीभिः प्रक्रांते हुन्मठे जागरोत्सवे / प्रवाद्यद्ददरातोद्यश्रीधे दर्दरारवैः // 97 // ग्रीष्मतापजुषः पृथ्व्यः सखीवाऽऽच्छाद्य वारिभिः। कस्तुरीपंकवत्पंकं सर्वांग प्रावृडातनोत // 18 // | भीममूस्तत्र संमदं कर्दमस्यातिभैरवं / वीक्ष्याज्ञाता जनैः शुद्धभूवासायागुतोऽचलत् // 99 // स्त्रीणां भावियुक्तानां तप एव विभू सर्ग-६ // 248 //
SR No.600399
Book TitleBhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuniratnasuri, Vijaykumudsuri
PublisherManivijay Ganivar Granthmala
Publication Year1942
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size28 MB
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