________________ | त्प्रियां हंसतूलिका सोत्तरच्छदाम् // 90 // स्मृत्वा पंचनमस्कारं नत्वाहतं च भावतः / तत्राशेत सुखं भैमी राजाऽभूयामिकः स्वयम् // 243 // 91 // अथाभ्युदयमापन्नो भैम्या दुःकर्मभूपतिः / नयनांभोजयोः कोपान्निद्रामुद्रामदात्तदा // 92 // तदीयस्नेहसर्वस्वमाच्छिद्य हृद-| दुर्दैवेन यौकसः / असंभाव्यां च तद्भर्तुर्दुश्चिन्तामित्यजीजनत् / / 93 / / युग्म् / / उपस्थितायां विपदि मरणं शरणं वरम् / मानैकशालिनां पुंसां | | दमयन्ती Jaklन पुनः श्वशुराश्रयः॥९४॥ प्रयाणपटहः किश्चोत्तमत्वस्य विवेकिनाम् / अधमत्वप्रवेशादिमंगलं श्वशुराश्रयः // 95 / / यद्दाक्षिण्याद् * त्यजने वल्लभाया मंत्रोऽप्यनुमतो मया / अंतः कृतन्ति मर्माणि मम तत्करपत्रवत् // 96 // त्यजामि यद्यमं सुप्तामकीतिः शाश्वती ततः। न | नलस्य विचारणा त्यजामि ततोऽवश्यं मां नयेत्कुंडिन प्रिया // 97 // तद्व्याघ्रदुस्तटीमध्यपतितः करवाणि किम् ? / हुं ज्ञातं दुर्यशोऽप्येतद्वरं नो मान खंडनम् // 98 // इयं च सुकुमारांगी सतीजनशिरोमणिः / लना मे पाप्मनः पृष्ठे धिक्कष्ट सहते कथम् 1 / 99 // मानश्रियं पुरस्कृत्य पराकृत्य प्रियामिमाम् / तद्याभ्यूद्धमुखं क्वापि स्वमादायाऽऽशु रंकवत् // 700 // व्याघ्रसिंहाहिचौरेभ्यो भूतादिभ्यश्च रक्षकः / स्वशै| लमहिमवास्याः शाश्वतोऽस्त्यंगरक्षकः // 1 // ध्यात्वेति वज्रसात्कृत्वा हृदयं निर्दयं नलः / वस्त्रार्द्ध च्छेत्तुमाकर्ष कृपाणी हा हताशयः // 2 // कूटातीतकालकूट दाहास्तप्रलयानल / आः पापः किमिदं म्लेच्छ नल निंद्यं करोषि हा // 3 // रे निर्दाक्षिण्य देव्यास्त्र वस्त्रा- | दे॒ऽपि कृतस्पृहम् / कुर्वाणो दक्षिणं पाणे प्राणर्मुक्तो न किं? विधिः // 4 // इत्थं नलं च पाणिं च कृपयेव कृपाणिका / आक्षेपन्ती * मूञ्छितेव भैम्याः खेदादधोऽपतत् // 5 // त्रि० वि०॥ भैमी सपत्नी मे पाणिग्रहणात्यजतो वने / पपात भुवि निस्तुंशपुत्र्यप्येषा | नही नलः // 6 // इत्थमश्रुजलापूर्णचक्षुः स्थित्वा क्षणं नलः। धीरो भूत्वा द्यूतकृत्वान्मुक्त्वाऽसौ हृददौहृदम् // 7 // हस्ताधिरुढविज्ञाने ||243 // लिग्धे सद्वंशशालिनि / कृपां कुरु कृपाणि ! त्वं कुकार्येऽप्युद्यतस्य मे // 8 // उपरुध्येति तां तीक्ष्णां व्यापार्यानार्यधीस्ततः / समं