________________ // 235 // कदम्बेन सह युद्धम् | दथवा तस्य वराकाः प्रभवन्ति न / प्रभविष्याम्यहं तर्हि नास्मि सोढाऽपराधिताम् // 38 // तद्गच्छ दूत त्वद्वाचा श्रुतया विद्ययेव चेत् / / स्वामिनं मुंचते लग्ना गाढहंकृतिडाकिनी // 39 // तद्वरं मांत्रिक इवान्यथा त्याजयितुं बलात् / अहमायात एवासीत्युक्त्वा ढक्कामदा-1 | पयत् // 40 // युग्मम् / / दृतोऽप्येत्य नलस्याख्यत् तत्कदम्बोक्तिवल्गितम् / उसिक्ते साम किं शांत्यै दीप्तेऽनावाज्यवद्भवेत् // 41 // तमम्यषेणयत्सर्वसबाहेन नलस्ततः / वीरा हि क्रियया शूराः कातराः स्युगिरा पुनः // 42 // नलानीकात्प्रचलितैढक्कानादरजश्चरैः / | स्पर्द्धयेव गतेर्दिक्षुर्यात्राऽज्ञाप्यत वैरिणाम् // 43 // द्विषत्प्रियामिव नलोऽधत्तक्षशिला दलैः। तद्वप्रं चांकयद्दासमिव दन्तैश्च दंतिनाम् | | // 44 // सिंहनादान् द्विषां श्रुखा कदंबः स्वबलैः सह / निर्जगाम बहिः पुर्या गुहाया इव केशरी // 45 // जयश्रियं निजनिज प्रभो| दातुं समुत्सुकाः / कदंबनलयोरभ्यागमं विदधिरे भटाः // 46 // जयसूर्याण्यवाद्यत पक्षयोरुभयोरपि / विचेरु बंदिनस्तेषां कुलविक्रम| शंसिनः // 47 // कैश्चिद्विनिर्ममे तत्र व्योम्नि नाराचमंडपः। कैश्चिद्दतिमुखोत्खातैदेतैः स्तंभाः प्रतेनिरे // 48 // कैश्चिच्च निशितैः | कुतै रंभास्तंभोच्छितिर्दधे / खङ्गैश्च चक्रिरे कैश्चिन्नीलाम्रदलतोरणाः // 49 // अढौक्यन्त रथाः कैश्चित कैश्चिच्च तुरगा मिथः / गर्जतश्च गजाः कैश्चित् स्पर्धाबन्धमनोहरैः // 50 // कैश्चिच्च शालिवद् बाढमकुट्यन्त पदातयः / कैश्चिद् वासांस्यरज्यंत रक्तैः कौसुंभवारिवत् | // 51 // केशाकेशि मुष्टामुष्टि दंतादन्ति कराकरि / बाहुबाहवि केषांचित्संमर्दोऽभृद्भयंकरः // 52 // अथ लोकक्षयालोकस्फुरत्कारुण्यपुण्यधीः / नलः कदंब माधुर्यवर्यवागित्यभाषत // 53 // जंतूनां किममन्तूनां हिंसयांहः प्रचीयते / आवयोवैरिणोरेव द्वंद्वयुद्धोत्स| वोऽस्तु तत् // 54 // स्वशौर्यप्रत्ययश्चैवं न क्षयः प्राणिनामपि / बोभवीत्यक्षयः कीर्तेः संचयश्च नरेश्वर // 55 // ओमित्युक्ते कदम्बेन करास्फोटकरावुभौ / आह्वासातां मिथो द्वंद्वयुद्धार्थ मल्लवत्ततः // 56 // तौ संयोगवियोगाभ्यां चयापचयकौतुकम् / स्वयं // 235 //