________________
प्रस्तावना आपणा धर्मनी पाछळ त्रण तत्त्व मुख्य छे अने ते देव गुरु अने धर्म छे. आ पर्युषणा पर्वमां पण त्रणेनी आराधना उत्कृष्टरीते थाय छे अने ते उत्कृष्ट आराधनामां कल्पमूत्र वांचन ए मुख्य छे. कारणके तेमां त्रग तत्त्वोनी आराधना पोषक कल्पश्रवण योगोद्वाही गुरुओ जिज्ञासुओने संभळावे छे. कारणके ते कल्पमूत्रमा मुख्यपणे त्रण अधिकार आवे छे. अने ते १ जिनेश्वरोनां चरित्रो, २ स्थविरावळी ३ अने समाचारी छे. अने ते त्रणे तत्त्वो अनुक्रमे देवनां चरित्र, गुरुनां चरित्र अने धर्मकथनरुप होइ कल्पश्रवण ए सम्यक्त्वनी उत्पत्ति अने निर्मळताना कारणरुप बने छे.
आ कल्पमूत्रमा प्रथम अधिकाररूपे वर्णवेलां चोवोशे जिनेश्वरोनां चरित्रोनुं वर्णन प्रथमथी बसो अठयावीस सूत्रमा वर्णवेल छे. स्थविरावलीरूप बीजा अधिकारनुं वर्णन ६१ मूत्रमा आवेल छे. अने तीजा अधिकाररूप कल्पसमावारी ६४ मूत्रमा वर्गवेल छे. जिनचरिताधिकारमा प्रथम अत्यंत आसन्न उपकारी महावीर भगवाननुं जन्म, बाल्यकाळ, युवाकाळ,, श्रमणावस्था. छद्मस्थावस्थाकाळ, कैवल्यकाळ अने छेवटे निर्वाणसुधोनुं विस्तृत जीवनचरित्र, संपूर्ण शुद्ध ने सत्यरीते आपेल छे. अने त्यारवाद संक्षिप्तरीते पार्श्वचरित्र नेमिचरित्र, शांतिनाथ चरित्र, अने ऋषभचरित्र ने वर्णवी शेष जिनेश्वरोना नामनिर्देश अने अंतरोनुं वर्णन करी समात करवामां आवेल छे, बीजो अधिकार ३३ आचार्योनी परंपरा अने तेओनो टुंकजीवन परिचयने हृदयंगमरीते वर्णनकरी पूर्ण करवामां आवेल छे. अने तोजो अधिकार साधु साध्वीओना आचार प्रायश्चित विगेरेन वर्णन करी समाप्त करेल छे.