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________________ कल्प-I प्रदीपिका भाइश्रीनो देखाव, शारीरीक संपत्ति तथा आनंदी चहेरो जोतांज सर्व कोइने लागतुं के आ कोई भविष्यनो महान नर छे. जे बावतो उपर भलभलानां मेजां काम करी न शके तेवी बाबतो नानी उमरमां पण तेमने सहजमां समज पडती. पिताश्रीना पैसाने तथा वैभवने वृद्धी साथे शोभा आपवानुं एमनु काम हतुं. एमनी पाछळ मित्रमंडळ अने चाळकोनुं टोळं हमेशां जामी रहेतुं. एक आज्ञांकित पुत्र, आज्ञांकित शिष्य, तथा व्हालसोया मित्र अने सलाहकार तरीके एमणे टुंक पण सुन्दर जीवन पसार कर्यु हतुं. तेवूज शुद्ध अने टुंक मृत्यु पण एमने प्राप्त थयु. ___ एक दैवी जीवन जेवू एमनु टंक आदर्श विद्यार्थिजिवन विश्वने अवनवा पाठ शीखवतुं गयुं छे. एवा आत्माओ ज्वलेज पृथ्वीपर अवतरे छे अने टुंक समयमा पोतानु काम आटोपी लइ स्वधाममां विरमे छे. एमना आत्माने तो मृत्युथी हर्ष-शोक कांइ नथी. आपणा जेवा स्वजनोनी फरज छे के एमनो आत्मा आनंद अने शांति अनुभवे एवी अहर्निश प्रार्थना करवी. एलीसन्नीज, अमदवाद १-६-३४ गोविन्द लाल देसाई बी. ए. एल. एल. बी.
SR No.600393
Book TitleKalpasutram
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMafatlal Zaverchand Gandhi
PublisherMukti Vimal Jain Granthmala
Publication Year1935
Total Pages376
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size31 MB
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