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प्रस्तावना
ज्ञान, दर्शन अमे चारिवना उच्च आदर्श शोभता जैनदर्शनमां ज्ञान या अंगप्रधोनुं जेतुं स्थान छे. तीर्थंकर 'भगवंतो तीर्थने स्थापे छे ते तीर्थमां द्वादशांगी तीर्थसम मनाय के, ने तेनुं अस्तित्व न होय तो तीर्थनो अभाव मनाय. अर्थात् जैनदर्शनना आत्मा समान भागम अंथो छे, ने ते आगमपंथाने अनुलक्षी जैनदर्शनना बीजा तमाम साहित्यनो विकास भने परिवर्धन थम के.
आ अंग बार छे. तेमां दृष्टिवाद घणां वर्षों थयां नाश पाम्युं होवाथी अगियार अंगो विद्यमान के तेमां प्रश्नव्याकरण दसमुं अंग तरीके प्रसिद्ध छे.
ग्रन्धनुं नाम
आ प्रन्धनुं नाम प्रश्नव्याकरण सूत्र छे, या प्रश्नव्याकरण दशा छे. आ मन्नेनो अर्थ प्रश्नव्याकरणनी विधमान बने वृत्तिओ जणाक्तां छे के मां प्रश्नो अंगुष्ठ वियेरे विद्या प्रश्नोनुं वर्णन होय ते प्रश्नव्याकरण अने कोइक ठेकाणे आ प्रन्थनुं नाम प्रश्नव्याकरण दशा छे तेनो मां विद्याभने प्रतिपादन करनारां दश अध्ययनो ग्रन्थनी पद्धतिओ छे ते प्रश्नव्याकरण दशा. परंतु उपर जणावेल बन्ने रीतिना अर्थ आजे विद्यमान प्रश्नव्याकरण प्रन्थमां उपलब्ध नभी. आजे तो प्रश्नव्याकरण मुदित छे तेमां अने आ छपाइ तैयार बती प्रतिमां जे दश अध्ययनो छे. ते वरेकमां पांच आश्रवद्वार भने संवारनं विवेचन के. हिंस्स मृषा चोरी अब्रा अनं परिग्रह ए पांच आश्रम. अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य अने अतित्वे तिल्यं रमणारे
१.ति
संबो