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श्रीयशोदे आयाममंबिलच्चिय पाएणं वंजणो जहिं भत्ते । कुम्मासोयणसत्तगपमुहे आयंबिलं तंति ॥ १३६ ॥ तग्गय आचामायि प्रत्यार पच्चक्खाणं भण्णइ आयंबिलंति तस्सत्थो । जह पुव्वं तह नेओ नवरि विसेसो इमो एत्थ ॥ १३७ ॥ ज पच्च- लिम्लमुपवासः ख्यान क्खइ तं चिय भोत्तव्वं अज्ज मेत्ति नियमेइ । जम्हा पवित्तिवयणो निवित्तिवयणो य वयसहो ॥ १३८ ॥ लेवो
पानास्वरूपे
काराश्च | मुणिभोयणभाणस्स विगईय लेवडेणं वा । एवं लित्तस्स पुणो कराइणा सोहणमलेवो ।। १३९ ॥ लेवो य अलेवो ॥१२॥दाय लेवालेवं तओ य भन्नत्थ । भाणे खीराइऽवयवभावेवि न होइ भंगोत्ति ॥ १४० ॥ सुकोयणाइभत्ते अहवदहि
माइ निवडियं दव्वं । इह उक्खित्तं भण्णइ तस्स विवेगो समुद्धरणं ॥ १४१ ॥ तो सम्मं तम्मि कए अंबिलपाउग्ग भोयणे भुत्ते । तदजोगफासिएवि हुन होइ भंगोत्ति परमत्थो ॥ १४२ ॥ जावइयं उवजुज्जइ तावइयं भा| यणे गहेऊणं । जलनिब्बुडू काउं भोत्तव्वं एस एत्थ विही ॥१४३।। दायगगिहिणो संबंधि भायणं जं करोडगाईयं । संसर्ट उवलित्तं विगईए लेवडेणं व ।। १४४ ॥ ता तेण दीयमाणं अकप्पदव्वेण होइ सम्मिस्सं। न य तं
भुजंतस्सवि भंगो भवइत्ति भावत्थो ॥१४२ ॥ वोसिरइ अणायंवं वुत्तं आयंबिलं अओ वोच्छं । पंचागारसलमेयं अभत्तटुं गणहरूढेि ॥ १४६ ॥ नो भत्तेणं अट्टो पओयणं जत्थ सो अभत्तहो । पच्चक्वाणविसेसो तत्थ
IX॥१२॥ इमं वन्नियं सुत्तं ॥ १४७ ॥
...सूरे उग्गए अभत्तहँ पञ्चक्खाइ चउविहंपि आहारं असणं ४, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं
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