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विशेषः
जोणिब्भूयं तु वा बी॥ २८० ॥ अफुड लिंगताओ जोणीसरिसत्ति वा सजीवपि । ण उ जोणीमतं चिय जोणीभूतं चयइ बीज वत्यां ॥ २८१ ॥ जोणी विज्जइ जस्स उ जोणीभूयति एस सम्भावो । जे भणियं निरुवयं सजीवमियरं व होज्जाहि ॥ २८२ ॥ जीप य
*वीजसजी 18 सो वऽण्णो वा तस्सत्थोऽयं गुरूवएसेणं । सोत्ति स एवानोऽविय जीवो जो तत्थ सण्णिहिओ ॥२८३॥ जइ गाम किह व परिणयजीवं ॥ २३।
वत्वचत्रों लिवीयं हवेज तो अण्णो । निरुवहए उववज्जए पउपरिहारसामत्था ॥ २८४ ॥ अहवा पच्चविऊणं स एव जीवो पुणोऽवि तंबीय।
पज्जविरोहणकाले एवंपि कयाइ होज्जा हि ॥ २८५ ॥ जं पुण णिज्जीव चिय सुक्कबियं णिच्चमयमणेगंतो। वासाइ सत्त भणिय जेणाऊ तेसिमुक्कोसं ॥ २८६ ॥ मूलं जीवो सो जेण वी देहं तैय विणिम्मवियं । अण्णेण वा जेण तयं विरोहकाले परिग्गहिरं |॥ २८७ ॥ सो किर पढमे पत्ते वच्चइ अण्ण य सो व सेसाई । णित्यत्तयंति मूलाइयाई जीवा कमेणे ॥ २८८ ॥ णिरुवयंपि
हु वकंतजीवि होज्ज किंचि बीयं तु । तं अइसइणो जुज्जइ णिज्जीवमिणति पाउं जे ॥ २८९ ॥ अणइंसईण पुणाइ णिरुवहराई | हवंति बीआई । ठिइकालब्धतरतो घेतव्वाई सजीवाई ॥ २९० ॥ बकंतजीविया पत्थिवादओ संति ण य असत्थहया । जुत्तमजीवा जाउं जह णिरइसयस्स तह बीअं ॥ २९१ ॥४६॥
हत्थिणापुरि सोमप्पभपुत्तो सेज्जंस जाइसंभरण | वसुधारदाणघोसण हवइ य पुफोघवासो अ॥२९२॥ अमयकलसाभिसेओ। रस्सिसमुद्धरणजुद्धसाहिज्ज । मंदररविपुरिसाणं सुविणं दिडं तिहिं जहि ॥ २९३ ॥ पडिलाभिए जिणवरे रायरिसीएत्ति जिण-14॥ २३ ॥
१ जोणीभूयं हषइ जम्दा २ चइयं ३ सुकत्रीय निव्वसयमणे एगते-णिच्चमण्णय. ४ देयं ५ पढ़मं पत्तं ६ णेया ७ ० इसएण