SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगार गर्भमें आनेके समवसे माताको जो जो इसने कष्ट दिये उनसे इसका मनोरथ पूर्ण न हो सका इसलिये अब उसको अपने प्रसवसे उत्पब मयानक दुःख देनेकेलिये पुनः प्रवृत्त हुआ है। जन्म लेने के बाद जो जो क्लेश होते हैं उनका विचार करते हैं: जातः कथंचन वपुर्वहनश्रमोत्थ,- दुःखप्रदोच्छुसनदर्शनसुस्थितस्य । जन्मोत्सवं सृजति बन्धुजनस्य यावद्, याम्तास्तमाशु विपदोनुपतन्ति तावत् ॥६६॥ नवीन शरीरके धारण करनेमें जो परिश्रम हुआ उससे, उत्पम हुए तथा और भी अनेक प्रकारके दुःखोंको देनेवाले श्वासोच्छासको देखकर अत्यंत आश्वासनको प्राप्त हुए बन्धुजनों-माता पिता बहिन भाई आदि बन्धुओं तथा अन्य इष्ट जनोंको पूर्वोक्त महान् कष्टोंके साथ साथ उत्पन्न हुआ यह जीव इधर अपने जन्मका आनन्द देता ही है कि उधरसे-उत्पन्न होते ही फुल्लिका अन्जेगोदिका आदि प्रसिद्ध विपत्तियां आकर इसको शीघ्र ही घेर लेती हैं। भावार्थ - उत्पन्न हुए बालकके श्वासोच्छासको देखकर उसे जीवित समझकर बंधुजन जन्मका उत्सव अध्याय .१ एक प्रकारके सफेद सफेद फोडे जो कि उत्पन्न होते ही किसी किसी बालकके हुआ करते हैं। -२ एक प्रकारका पेटमें होनेवाला दर्द जो कि उत्पन्न होते ही माका दूध न पचनेसे या किसी अंतरङ्ग कारणले । किसी किसी बालकके हुआ करता है। अन० घ०११ HISBN
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy