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________________ अनमार योग कहते हैं। इसको धारण करनेवाले योगी यदि दीक्षाकी अपेक्षा उम्र में छोटे हों तो भी सम्पूर्ण साधुओंको अत्यंत आदरभावसे उनका क्रियाकाण्ड सिद्धभक्ति योगिभक्ति और शांतिमक्तिको बोलकर पूर्ण करना चाहिये। जैसा कि कहा मी है कि: प्रतिमायोमिनः साघोः सिद्धानागारशांन्तिभिः। विधीयते क्रियाकाण्ड सर्वसंधेः सुभक्तितः॥ दीक्षा ग्रहण करने और केशलोंच करनेकी क्रियाकी विधि बताते हैं: सिद्धयोगिबृहद्भक्तिपूर्वकं लिङ्गमर्प्यताम् । लुश्चाख्यानाग्न्यपिच्छात्म क्षम्यतां सिद्धभक्तितः॥८३॥ ... केशलुश्चन, नामकरण, सर्वथा नग्न दिगम्बर अवस्था, और पिच्छी इनके समूहको जिनलिङ्गका स्वरूप समझना चाहिये । आचार्यको यह लिंग बृहत् सिद्धमक्ति और वृात योगिक्ति बोलकर सुमुक्षुमें अपेण करना चाहिये । तथा यह लिङ्गार्पणका विधान सिद्धभक्ति के द्वारा समाप्त करना चाहिये । दीक्षा दानके अनन्तर क्या कर्तव्य है सो दो पद्योंमें बताते हैं: व्रतप्तमितीन्द्रियरोधाः पञ्च पृथक् क्षितिशयो रदाघर्षः । स्थितिसकृदशने लुश्चावश्यकषट्रे विचेलताऽस्नानम् ॥ ८४ ॥ इत्यष्टाविंशति मूलगुणान् निक्षिप्य दीक्षिते । संक्षेपेण सशीलादीन गणी कुर्यात्प्रतिक्रमम् ॥ ८५ ॥(युग्मम् ) मुनियाक मूलगुण अहाईस हैं। यथा-अहिंसादिक पांच महाव्रत, ईर्यासमिति आदिक पांच समिति, | और पांचो इन्द्रियों का अपने २ विषयोंसे निरोध, ये पन्द्रह मेद हुए, इनका विशेष स्वरूप पहले लिखा जाचुका अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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