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________________ यावजार ९०१ बध्याय 盈盈盈盈缀作 और उनका मरण हो जाय तो उनके शरीरकी अथवा निषद्या भूमिको बन्दना क्रमसे सिद्धभक्ति श्रुतभक्ति योगमति आचार्यभक्ति और शांतिभक्ति बोलकर करनी चाहिये । किंतु जो ऋषि आचार्यपद पर भी प्रतिष्ठित हैं और काय क्लेश तपके धारण करनेवाले भी हैं यदि उनका मरण हो जाय तो उनके शरीरकी या निषद्या भूमिकी वन्दना क्रमसे सिद्धभक्ति योगिभक्ति चारित्रमक्ति आचार्यभक्ति और शांतिभक्ति बोलकर करनी चाहिये । यदि कोई ऋषि आचार्य भी हैं और सिद्धान्तवेत्ता तथा कायक्लेश तपके धारण करने वाले भी हैं उनका यदि मरण हो जाय तो उनके शरीरकी अथवा निषद्याभूमिकी वन्दना क्रमसे सिद्धभक्ति श्रुतमक्ति चारित्रमक्ति योगिभक्ति आचार्यभक्ति और शांतिभक्तिबोलकर करनी चाहिये । इस विषय में कहा भी है कि:-- काये निषेधिकायां च मुनेः सिद्धशान्तिभिः । उत्तरव्रतिनः सिद्धवृत्तार्षशान्तिभिः क्रियाः ॥ सैद्धान्तस्य मुनेः सिद्धश्रुतर्षिशान्तिभक्तिभिः । उत्तरव्रतिनः सिद्धभुतवृत्तार्प शान्तिभिः ॥ सूरेर्निषेधिकाका सिध्दर्षिसूरिशान्तिभिः शरीरवेशिनः सिदवृत्तर्षिणिशान्तिभिः ॥ सैध्दान्ताचार्यस्य सिध्दश्रुतर्षिसूरिशान्तयः । अस्य योगे सिध्दश्रुतवृत्तर्षिगणिशान्तयः ॥ श्रीअरहंत भगवान्की स्थिरप्रतिमाकी प्रतिष्ठा और चल प्रतिमाकी प्रतिष्ठा के समय की विधि और उस प्रतिष्ठा के समय में ही चतुर्थ दिनको किये जानेवाले अभिषेकके क्रिया विशेषको बताते हैं । स्यात्सिद्धशान्तिभक्तिः स्थिरचलजिनबिम्बयोः प्रतिष्ठायाम् । अभिषेकवन्दना चलतुर्यस्नानेस्तु पाक्षिकी त्वपरे ॥ ७४ ॥ स्थिरप्रतिमाकी प्रतिष्ठा अथवा चल प्रतिमाकी प्रतिष्ठा के समय सिद्धभक्ति और शांतिभक्तिको बोलकर COFF燉湯雞 ·៖ ९०१
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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