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________________ ऊपर भक्त प्रत्याख्यानको ग्रहण करनेकी जो विधि बताई है तदनुसार उसके ग्रहण करनेके अनंतर आ. चार्य प्रभृति माधुओंको वर्षायोगका प्रतिष्ठापन करना चाहिये और चातुर्मासके अंत में उसका निष्ठापन करना चाहिये । इस प्राष्ठिापन और निष्ठापनकी विधि इस प्रकार है चार लघु चैत्यभक्तियोंको बोलते हुए और पूर्वादिक चारो ही दिशाओं की तरफ प्रदक्षिणा देते हुए आषाढ शुक्ला चतुर्दशीकी रात्रिको पहले ही प्रहरमें सिद्धभक्ति और योगिभाक्ति का भी अच्छी तरह पाठ करते हुए और पंचगुरुभक्ति तथा शांति भक्तिको भी बोलकर आचार्य और इतर सम्पूर्ण साधुओंको वर्षायोगका प्रतिष्ठापन करना चाहिये भावार्थ-पूर्व दिशाकी तरफ मुख करके वर्षायोगका प्रतिष्ठापन करनेकेलिये “यावन्ति जिनचेत्यानि" इत्यादि श्लोकका पाठ करना चाहिये । पुनः आदिनाथ भगवान और दूसरे अजितनाथ भगवान् इन दोनोंका ही स्वयंभू स्तोत्र बोलकर अंचलिका सहित चैत्यमक्ति करनी चाहिये । यह पूर्व दिशाकी तरफकी चैत्य चैत्यालयकी वन्दना है । इसी प्रकार दक्षिण पश्चिम और उत्तरकी तरफकी वन्दना भी क्रमसे करनी चाहिये । अंतर इतना है कि जिस प्रकार पूर्वदिशाकी वंदनामें प्रथम द्वितीय तीर्थकरका स्वयम्भूस्तोत्र बोला जाता है उसी प्रकार दक्षिण दिशाकी तरफ तीसरे चौथे संभवनाथ और अभिनन्दन नाथका तथा पश्चिमकी तरफ की वन्दना करते समय पांच छहे सुमतिनाथ और पद्मप्रभु भगवान्का और उत्तर दिशाकी वन्दना करते समय सातवें आठवें सुपार्श्वनाथ और चन्द्रप्रभुका स्वयंभूस्तोत्र बोलना चाहिये । और बाकी क्रिया पूर्वदिशाके समान ही समझनी चाहिये । यहांपर चारो दिशाओंकी तरफ प्रदक्षिणा करनेकेलिये जो लिखा है, उस विषयमें वृद्धसम्प्रदाय ऐसा है कि पूर्वदिशाकी तरफ मुख करके और उधरकी वन्दना करके वहीं बैठे बैठे केवल भावरूपसे ही प्रदक्षिणा करनी चाहिये। यह वर्षायोगके प्रतिष्ठापनकी विधि है । यही विधि निष्ठापन में भी करनी चाहिये । अर्थात् कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीकी रात्रिको अंतिम प्रहरमें पूर्वोक्त विधान के अनुसार ही आचार्य और साधुओंको वर्षायोगका निष्ठापन कर देना चाहिये। ११३
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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