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________________ अनगार - वृत्तालोचनया साप गुर्वालोचनया क्रमात् । सूरिद्वयस्तुतिं मुक्त्वा शेषाः प्रतिक्रमा क्रमात् ।। अर्थात-क्रमसे चारित्रालोचना और बृहदालोचनाके साथ २ दोनों आचार्य भक्तियों के सिवाय बाकी के प्रतिक्रमण क्रमसे हुआ करते हैं। इस प्रकार संक्षेपमें पाक्षिकादि प्रतिक्रमणकी विधि और उसका क्रम बताकर अब नैमित्तिक क्रियाओंक प्रकरण में संयमी साधुओं और श्रावकों के लिये श्रुतपंचमी के दिन क्या क्रिया करनी और किस तरह करनी उसकी विधि दो श्लोकों द्वारा बताते हैं: बृहत्या श्रुतपञ्चम्यां भक्त्या सिद्धश्रुतार्थया । श्रुतस्कन्धं प्रतिष्ठाप्य गृहीत्वा वाचनां बृहन् ॥ ५७ ॥ दाम्यो गृहीत्वा स्वाध्यायः कृत्या शान्तिनुतिस्ततः । यामनां गृहिणां सिद्धश्रुतशान्तिस्तवाः पुनः ॥ ५८ ॥ (युग्मम् ) संयमी साधुओंको बृहत् सिद्धमाक्त-"सिद्धानुकर्म" इत्यादि और बृहत श्रुतभक्ति-“ स्तोष्ये संज्ञानानि" इत्यादिके द्वारा श्रुतस्कन्धका प्रतिष्ठापन करना चाहिये। और श्रुतावतारके उपदेश को ग्रहण कर बृहत् श्रुतमाक्त और बृहत् आचार्यभक्ति के द्वारा बृहत् स्वाध्यायका प्रतिष्ठापन करना चाहिये। तथा अंतमें वृहत श्रुतमक्ति घोलकर उस स्वाध्यायकी निष्ठापना-समाप्ति करनी चाहिये । इस प्रकार श्रुतपंचमी-ज्येष्ठ शुक्ला ५ के दिन साधु. ओंको क्रमसे क्रिया करनी चाहिये । जैसा कि चारित्रासारमें भी कहा है कि: "श्रुतपंचम्या सिद्धश्रुतभक्तिपूर्विका वाचना गृहीत्वा तदनु स्वाध्यायं गृह्णतः श्रुतमक्तिमाचार्य भक्तिं च कृत्वा गृहीतस्वाध्यायाः कृतश्रुतमक्तयः स्वाध्यायं निष्ठाप्य समाप्तौ शान्तिमक्किं कुर्युः"। अर्थात-साधुओंको श्रुतपंचमी के दिन सिद्धमक्ति और श्रुतभाक्ति पूर्वक श्रुतावतारके उपदेशको ग्रहण अन्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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