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________________ बनगार विणएण सुदमधीदं जदि वि पमादेण होइ विस्सरिदं । तमुवट्ठादि परभवे केवलणाणं च आवहदि ।। अर्थात-विनयके साथ पढा हुआ श्रुत यदि प्रमादसे विस्मृत भी हो जाय तो भी वह परमत्रमें उपस्थितस्मृत हो आता है और केवलज्ञानतकका लाम कराता है। जिस विशिष्ट शानसे तत्वज्ञान आदि मोक्षके साधन प्राप्त हुआ करते हैं वह जिनशासनमें ही मिल सकता है, अन्यत्र नहीं ऐसा उपदेश करते हैं: तत्त्वबोधमनोरोधश्रेयोरागात्मशुद्धयः। __ मैत्रीद्योतश्च येन स्युस्तज्ज्ञानं जिनशासने ॥६॥ - सर्व वस्तुजातमनेकान्तात्मकम् " अर्थात् सम्पूर्ण वस्तुमात्र अनन्तधर्मात्मक हैं, इस सिद्धान्तको जिनशासन कहते हैं। और इसके विरुद्ध सर्वथा एकान्त रूप वस्तुको माननेवाले सर्वथैकान्त वादी कहे जाते हैं। मो तत्वज्ञानादि पांच या छह विषय ऐसे हैं जो कि इस जिनशासन में ही मिल सकते हैं, अन्यत्र-सर्वथै. कान्तवादियोंके मतमें नहीं। तबोध-तत्व तीन प्रकारके माने गये हैं, हेय, २ उपादेय, ३ और उपेक्षणीय । इनमें से यथायोग्य अर्थात हेयका हेयरूप से, उपादेयका उपादेयरूपसे और उपेक्षणीयका उपेक्षणीयरूपसे बोध-प्रतिपत्ति होना उसको तत्वबोध कहते हैं । यथाः इतीदं जीवतत्त्वं यः श्रद्धत्ते वेत्त्युपेक्षते । शेषतत्त्वैः समं पब्मिः स हि निर्वाणभाग् भवेत् ॥ अर्थात जो मए अजीवादिक छह तचोंके साथ २ इस जीवतत्वका श्रद्धान करता है, ज्ञान प्राप्त करता है, और प्रेक्षणीय में उपेक्षा किया करता है वही जीव निर्माणका भागी हो सकता है. सारांश यह कि सात तत्वोंमें हेय अध्याय ८४९ १०७
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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