SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 859
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बनगार ८४७ प्रारम्भ साधुओंको सूर्यास्त से दो घडीके अनंतर करना चाहिये और मध्य रात्रिके दो घडी पहले समाप्त कर देना चाहिये. तथा अपररात्रिक स्वाध्यायका प्रारम्भ अर्धरात्रि के दो घडी पीछे करना चाहिये और प्रातः कालसे दो घडी पहले समाप्त करना चाहिये । स्वाध्यायका लक्षण और उसके विधिपूर्वक पालन करने का फल बताते है: सूत्रं गणधरायुक्तं श्रुतं तद्वाचनादयः। स्वाध्यायः स कृतः काले मुक्त्यै द्रव्यादिशुद्धितः॥४॥ गणधर आदिके प्ररूपित शास्त्रोंको सूत्र कहते हैं। इन सूत्रोंके वाचना पृच्छना अनुप्रेक्षा आम्नाय और धमोपदेश को स्वाध्याय कहते हैं। यह स्वाध्याय योग्य समयमें और द्रव्यादिककी शुद्धिपूर्वक करनेसे काँका क्षय होता और मुक्तिकी प्राप्ति होती है। भावार्थ-गणधर, प्रत्येक बुद्ध, श्रुतकेवली और अमिन दशपूर्वका ज्ञान रखनेवाले आचार्यों द्वारा उपदिष्ट ग्रंथोंको सूत्र कहते हैं। यथाः सुत्तं गणहरकहिदं सहेब पत्तेयबुद्धकहियं च । सदकेवलिणा कहिदं अभिण्णदसपुविकहिदं च ॥ तं पढिदुमसज्झाए ण य कप्पदि विरदि इस्थिवग्गस्स । एत्तो अण्णो गथो कप्पदि पढिहूँ असज्झाए । आराधणणिज्जुत्ती मरणविभत्ती असग्गहथुदीवो।। पञ्चक्खाणावासय धम्मकहाओ य एरिसओ ॥ अर्थात-गणधर, प्रत्येकबुद्ध, श्रुतकेवली और दशपूर्वके पाठी आचार्यों द्वारा कथित ग्रंथोंको सूत्र कहते हैं। उसका पाठ स्वाध्यायके नियतकालमें ही करना चाहिये । अयोग्य कालमें उसका पाठ करना उचित नहीं है। अस्वाध्याय कालमें सूत्रसे भिन्न ग्रंथोंका पाठ किया जा सकता है। बध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy