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________________ किया करता है। यह फल अशक्ति की अपेक्षासे ही बताया है। क्योंकि वृद्ध पुरुषोंका वचन है कि जं सका तं कीरइ जंच ण मक्केइ तं च सरहणं । सरहमाणो जीवो पावह अजरामरं ठाणं । जिस विषय के पालन करने की सामर्थ है उस विषय का पालन करना ही चाहिये। परन्तु जिसके पालन करने की शक्ति नहीं है उसका श्रद्धान रखना चाहिये । क्योंक श्रद्धानी जीव ही अजर अमर पदको प्राप्त किया करते हैं। यहांपर वै शब्दके द्वारा जो नियम बताया है उससे इस कथनका तात्पर्य समझना चाहिये कि: सवैयवश्यकैर्युक्तः सिद्धो भवति निश्चितम् । सावशेषैस्तु संयुक्तो नियमास्वर्गगो भवेत् ॥ अर्थात-सम्पूर्ण आवश्यकोंका पालन करने वाला नियमसे सिद्ध पदको और अपरिपूर्णका पालन करने वाला नियमसे स्वर्गतिको प्राप्त किया करता है। उक्त पडावश्यक क्रियाओं की तरह साधुओंको दूसरी सामान्य क्रियाओंका भी नित्य पालन करना चाहिये ऐसा उपदेश देते हैं: आवश्यकानि षट् पञ्च परमेष्ठिनमस्क्रियाः। निसही चाऽसही साधोः क्रियाः कृत्यास्त्रयोदश ॥ १३.॥ छह आवश्यक क्रियाएं, और अबदादिक पंच परमेष्ठियोंको नमस्कार करनेकी पांच क्रियाएं, तथा एक निसही और एक असही, इस तरह कुल तेरह क्रियाएं हैं कि जिनका साधुओंको प्रतिदिन अवश्य पालन करना ही. चाहिये। अईदादि परमेष्ठियोंको भावोंसे पंचनमस्कार करनेवाला क्या फल प्राप्त करता है सो बताते हैं:
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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