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________________ बरमार RASANATAKAR NA 3) 2009 2绵绵绸端鋼鐵鑄鐵繁露露蹦蹦蹦跳露蹦蹦蹦蹦蹦蹦網经 उन्मत्त ऊवं नयनं शिरोधेबहुधाप्यधः ॥ ११९ ।। १८-कायोत्सर्ग करते समय भ्रुकुटियोंका विकार युक्त होजाना भ्रक्षेप नामका दोष है। १९-मदिरा पीकर उसके नशेसे पागल हुआ मनुष्य जिस प्रकार घूमा करता है उसी प्रकार कायोत्सर्ग करते समय घूमनेसे उन्मत्त नामका दोष कहा जाता है। २०-अनेक तरहसे ग्रीवा-गर्दन को ऊपर की तरफ उठाना ग्रीवो नयन नामका दोष है। २१-अपनी ग्रीवाको अनेक तरहसे नीचे की तरफ झुकाना ग्रीवाधोनयन नामका दोष है। निष्ठीवनं वपुःस्पर्शो न्यूनत्वं दिगवेक्षणम् । मायाप्रायास्थितिश्चित्रा वयोपेक्षाविवर्जनम् ॥ १२०॥ २२-थूकना और श्लेष्मा आदिका निकालना निष्ठावन नामका दोष है। २३-शरीरका इधर उधर स्पर्श करना वपुःस्पर्श नामका दोष है। २४-कायोत्सर्गको जितने प्रमाणमें करना चाहिये उतनान करके कुछ कम करना न्यूनता नामका दोष है। २५-इधर उधर दिशाओंकी तरफ देखते हुए कायोत्सर्ग करना दिगवेक्षण नामका दोष है। २६- वञ्चनायुक्त-प्रायःमायाचारसे पूर्ण विचित्र रूपसे कायोत्सर्ग के लिये ऐसी तरहसे खडे होना कि जिसको देखकर लोगों को आश्चर्य हो मायाप्रायास्थितिनामका दोष है। २७-- आयुका ख्याल करके अर्थात् वृद्धावस्थाका विचार करके कायोत्सर्गका छोड देना वोपक्षाविवर्जन नामका दोष है। व्याक्षेपासक्तचित्तत्वं कालापेक्षाव्यतिक्रमः। लोभाकुलत्वं मूढत्वं पापकर्मैकसर्गतः ॥ १२१॥ KARNATAKARANAS NAMAMMERASHANTINENERAKAR बध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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