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________________ अनगार - - करता है उसी प्रकार अधर्मका उदय होनेपर विपत्तियोंका उपभोग और अनुदय होनेपर उनका अनुपभोग हुआ करता है। यही बात दिखाते हैं: - धर्म एव सतां पोष्यो यत्र जाग्रति जाग्रति । भक्तं मीलति मालान्त संपदो विपदोन्यथा ॥४८॥ विचारपूर्वक कार्य करनेवाले सत्पुरुषोंको चाहिये कि वे उस धर्मको ही सदा पुष्ट करें कि जिसके जाप्रत होते ही अपने स्वामीकी सेवा करनेकेलिये समस्त संपत्तियां जाग्रत हो उठतीं और जिसके विराम लेते ही वे भी विराम लेलेती हैं। उस अधर्मको कभी पुष्ट न करना चाहिये कि जिसके जाग्रत होनेपर समस्त विपत्तियां जाग्रत होती और संपत्तियां नष्ट होजाती हैं। जिस प्रकार राजाओंकी सेवा करनेकेलिये वाराङ्गनाएं पारकरके सावधान रहनेपर सावधान और असावधान रहनेपर असावधान रहा करती हैं, उसी प्रकार प्रकृतमें भी समझना चाहिये। . इस प्रकार धर्म सुखका उत्पन्न करनेवाला है यह बात बताकर अब यह बताते हैं कि उससे दुःखकी निवृत्ति भी होती है। इस बातको चौदह श्लोकोंमें स्पष्ट करेंगे, जिनमेंसे निम्नलिखित पद्यमें यह दिखाते हैं कि दुर्गम देशोंमें धर्म जीवका किस प्रकार उपकार करता है: कान्तारे पुरुपाकसत्त्वविगलत्सत्त्वम्बुधौ बम्भ्रमत ,ताम्यन्नक्रपयस्युदर्चिषि मरुचक्रोच्चरच्छोचिषि । संग्रामे निरवग्रहद्विषदुपस्कारे गिरौ दुर्गम,-.. ग्रावग्रन्थिलदिखेप्यशरणं धर्मों नरं रक्षति ॥४९॥ - अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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