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________________ बनमार अमृतचन्द्र प्राचार्य ने कहा है कि यो यतिधर्ममकथयन्नुपदिशति गृहस्वधर्ममल्पमतिः । तस्य भगवत्प्रवचने प्रदर्शितं निग्रहस्थानम् ॥ - इसीके अनुसार पंडित बाशावरजीने धर्मामृत ग्रंथकी रचना की है। परन्तु उसकी टीका रचनाका काल उससे विपरीत है। अर्थात् सामारधर्मामत जो कि इस ग्रंथका उत्तरार्ध है उसकी टीका इस अनगार धर्मामृतपूर्वाधकी टीकासे १ वर्ष पहले बनचुकी है । दैवयोगसे उसके हिन्दी अनुवादमें भी यही घटना बनी है। सागार 'धर्मामृतका अनुवाद पं लालारामजीके द्वारा पहले हो चुका है और कई वर्ष हुए वह प्रकाशमें भी आ चुका है। उसके बाद बाज अनगार धर्मामृत मन अस्प बुद्धि के द्वारा अनूदित होकर पाठकोंके करकमलों में अर्पित होता है। आशाकि सहृदय समक्षु विद्वान इससे लाभ उठावेंगे। यद्यपि इसके अनुवादका विचार और प्रारम्भ कई वर्ष हुए तभी हमने किया था परन्तु अनेक विन के वश पूर्ण नहीं किया जा सकाथा । अस्तु । आज इसको पूर्ण करते हुए हम श्रीजिनेन्द्र भगवान्के चरणों में भक्तिपुः प्पांजलिका अर्पण करते है। और यह अनुवाद सोलापारिवासी द्वितीयप्रतिमापारी श्रीमान सेठ रावजी सखाराम दोषीकी प्रेरणा और श्रीयुत सेठ खुशालचंदजी गांधी (नाथारंगजीवाले) द्वारा श्री नाथारंगजी जेनोमतिफंड की सहायतासे प्रकाशित होता है अत एव उक्त दोनोंती मन्यात्मों के प्रति पुनः२ कृतज्ञता प्रकाशित करते हैं। अंतमें पाठकोंकी सेवामें भी निवेदन है कि अस्पज्ञताके कारण यदि हमसे कहीं अर्थविपर्यास या लिखनेमें स्खलन होगया हो तो क्षमा करें और उसका संशोधन करनेकी कृपा करें। सोलापुर प्रार्थी ता.१-६-२७ खूबचंद.
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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