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________________ बनगार K बच्चाय अर्थात् मन लगाकर और अर्थकी तरफ भी ध्यान देते हुए प्रतिक्रमण सूत्रका पाठ करनेसे संयमियोंके कमकी महान् निर्जरा हुआ करती है। इस सब कथनका तात्पर्य यह है कि आजकल दुःषम काल है । इसके प्रसादसे लोगोंकी बुद्धि या प्रवृत्ति वक्र और जडरूप होजाती है, चित्त चंचल रहा करता है, जिससे कि प्रायः उनसे अपराध हुआही करते हैं। यहांतक कि व्रतादिकोंमें जो अतिचार वे अपने आप लगालिया करते हैं उनका भी उन्हे स्मरण नहीं रहता । अत एव ईर्ष्या गमनागमनादिकमें कोई दोष लगे या न लगे सबको समस्त अतीचारोंकी शुद्धिके लिये सम्पूर्ण प्रतिक्रमण करने ही चाहिये। क्योंकि इन प्रतिक्रमणोंके कहते समय चाहें सबमें उपयोग न लगे, किन्तु जिस किसी भी प्रतिक्रमण में चित्त स्थिर हो जायगा उसीसे समस्त दोष दूर हो जायगे । क्योंकि ये सभी प्रतिक्रमण कर्मोंके नष्ट करने में समर्थ हैं। जैसा कि कहा भी है कि: स प्रतिक्रमणो धर्मो जिनयोरादिमान्त्ययोः । अपराधे प्रतिक्रान्तिर्मध्यमानां जिनेशिनाम् ॥ यदोपजायते दोष आत्मन्यन्यतरत्र वा । तदैव स्यात्प्रतिक्रान्तिर्मध्यमानां जिनेशिनाम् ॥ ईर्यागोचरदुःस्वप्रप्रभृतौ वर्ततां नवा । पौरस्त्यपश्चिमाः सर्व प्रतिक्रामन्ति निश्चितम् ॥ मध्यमा एकचित्ता यदमूढदृढबुद्धयः । आत्मनानुष्ठितं तस्माद्रईमाणाः सृजन्ति तम् ॥ पौरस्त्यपश्चिमा यस्मात्समोद्दाश्चलचेतसः । ततः सर्व प्रतिक्रान्तिरन्धोऽश्वत्र निदर्शनम् ॥ अर्थात् सबसे पहले तीर्थंकर भगवान् आदिनाथ स्वामीके समयमें और सबसे पिछले महावीर स्वामिके समय में ही इस प्रतिक्रमण धर्मका सदा पालन किया जाता है। बाकी के मध्यवर्ती बाईस तीर्थकरों के बाडे में इसका सदा पालन नहीं किया जाता, जब अपराध होता है तभी किया जाता है। पहले और पिछले वर्षिकरके 330 नम● ७८१
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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