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________________ अनगार हितकी प्राप्ति और अहितका परिहार करनेकेलिये उसके कारणोंका जिनसे कि हितकी प्राप्ति और अहितका उच्छेद हो सकता है ऐसे अहंत सिद्धादिक अथवा प्रवचनादिक माहात्म्यको प्रकट करनेके लिये सदा निष्कपट प्रयत्न करनेकाही नाम सत्पुरुषोंने विनय कहा है। विनयके पांच भेदोंका नाम गिनाकर यह बताते हैं कि वन्दनारूप आवश्यक प्रकरणमें विनयशब्दसे मोक्षहेतक विनयका ही ग्रहण करना चाहिये । और इसीलिये जो निर्जरार्थी हैं उन्हे इस विनयके पांचवें भेद मो. क्षार्थ विनयका अवश्य पालन करनेके लिये उपदेश देते हैं: लोकानुवृत्तिकामार्थभयनिःश्रेयसाश्रयः । विनयः पञ्चधावश्यकार्योन्त्यो निर्जरार्थिभिः ॥४८॥ विनय पांच प्रकारका है, लोकानुवृत्तिहेतुक, कामहेतुक, अर्थहेतुक, भयहेतुक, और मोक्षहेतुक । किंतु जो निर्जरार्थी हैं उन्हे इन पांच भेदोंमेंसे अंतिम भेद मोक्षहेतुक विनयका अवश्य ही पालन करना चाहिये । जैसा कि कहा भी है कि: लोकानुवर्तनाहेतुस्तथा कामार्थहेतुकः। विनयो भयहेतुश्च पञ्चमो मोक्षसाधनः । उत्थानमञ्जलि पूजाऽतिथेरासनढौकनम् । देवपूजा च लोकानुवृत्तिकृद्विनयो मतः ।। भाषाछन्दानुवृत्तिं च प्रदानं देशकाळयोः । लोकानुवृत्तिरीय विनयश्चाञ्जलिक्रिया । कामतंत्रे भये चैव हवं विनय इष्यते । विनयः पन्चमो यस्तु तस्यैषा स्यात् प्ररूपणा ॥ अर्थात विनय पांच हेतुओंसे हुआ करता है, अत एव उसके पांच भेद हैं। एक तो वह कि जिसमें लोकोंका अनुवर्तन किया जाता है, दूसरा वह कि जो कामके प्रयोजनसे किया जाता है, तथा तीसरा वह कि जो अर्थ-धनकेलिये अध्याय ७५९
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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