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________________ दीक्षावृक्षके द्वारा, जैसे कि: न्यग्रोधो मदगन्धिसर्जमसनश्यामे शीरीषोहतामेते ते किल नागसर्जजटिनः श्री तिन्दुका पाटलाः । जम्बश्वत्थकपित्थनन्दिकविटाम्रा वंजुलश्चम्पको जीयासर्वकुलोत्र वांशिकधषौ शालश्च दीक्षाद्रुमाः जिनके नाचे तीर्थकर भगवानने दीक्षा ग्रहण की ऐसे श्री आदिनाथ प्रभृति चौबीस तीर्थंकरोंके न्यग्रो. धादिक चार्वास दीक्षावृक्ष सदा जयवंते रहो। लोकोत्तम शब्दसे तीर्थकर ही लिये जाते हैं। क्योंकि उनकी प्रभुता संसार में सर्वोत्कृष्ट है । आगममें कहा है कि तित्थषराण पहुत्तं णेहो बलदेव केसवाणं च । दुःखं च सवित्तीणं तिणि वि परभागपत्ताई ॥ तीर्थकरोंकी प्रभुता, बलदेव और नारायणका भ्रातृस्नेह, और स्त्रियों की प्रसूतिपीडा। ये तीनों सर्वोत्कृष्ट हैं। अत एव लोकोत्तम अर्थात् तीर्थंकरोंका शरीरादि के द्वारा स्तवन करनेको द्रव्य चतुर्विंशतिस्तव कहते हैं। क्षेत्रस्तवोर्हता स स्यात्तत्स्वर्गावतरादिभिः । पूतस्य पूर्वनाद्यादेर्यप्रदेशस्य वर्णनम् ॥ ४२ ॥ तीर्थकरोके गर्भ जन्म आदि कल्याणकोंके द्वारा पवित्र हुए नगर वन पर्वत आदिके वर्णन करनेको क्षेत्रस्तव कहते हैं। जैसे कि नगरियोंमें अयोध्या आदि, वनों में सिद्धार्थादिक और पर्वतोंमें कैलाश आदि । कालस्तवका स्वरूप बताते हैं कालस्तवस्तीर्थकृतां स ज्ञेयो यदनेहसः । बध्याय ७६५
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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