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________________ बनगार धर्मक सरकार | स्थापनास्तवका स्वरूप बताते हैं: कृत्रिमाकृत्रिमा वर्णप्रमाणायतनादिभिः । व्यावर्ण्यन्ते जिनेन्द्रार्चा यदसौ स्थापनास्तवः ॥ ४ ॥ कृत्रिम-किसी कर्ता करण आदिके द्वारा बनी हुई तथा अकृत्रिम जो बिना किसी कती करणके स्वयं बनी हों ऐसी जिनप्रतिमाओंका वर्ण-रूप, प्रमाण-लंबाई चौडाई उंचाई, तथा आयतन-मंदिर आदिकी अपेक्षा वर्णन करनेको स्थापना स्तव कहते हैं। द्रव्यस्तवका स्वरूप बताते हैं: वपुलक्ष्मगुणोच्छायजनकादिमुखेन या। लोकोत्तमानां संकीर्तिश्चित्रो द्रव्यस्तवोस्ति सः ॥ ४१ ॥ तीर्थकर भगवान्के शरीर चिन्ह गुण उत्सेध और माता पिता आदिके द्वारा अनेक प्रकारसे और आश्च.. र्यकारी महत्व वर्णन करनेको द्रव्यस्तव कहते हैं। भगवानके शरीरकी सुंदरताका वर्णन: सनवव्यञ्जनशतैरष्टाप्रशतलक्षणैः। विचित्रं जगदानन्दि जयतादर्हतां वपुः ।। तथा- जिनेन्द्रान्नौमि तान्येषां शारीराः परमाणवः । विद्युतामिव मुक्तानां स्वयं मुश्चन्ति संहतिम् ।। अर्थात नौ सौ व्यंजन और एकसौ आठ लक्षणों के द्वारा अपूर्व सौन्दर्यको धारण करनेवाला भगवानका "शरीर सदा जयवंता रहो। मैं उन अहतोको नमस्कार करता हूं कि जिनके मुक्तिलाम करते ही उनके शरीरके परमाणु आपसके सम्बन्धको लोडकर विजलीकी तरह स्वयं ही आकाशमें विलीन हो जाते हैं। १-इनके लक्षण और नामादिक महापुराणके पर्व १५ में बताये हैं। वहांपर देखलेने चाहिये । याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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