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________________ बनगार धर्म १३ मावार्थ-शुभाशुभ विषयों में रागद्वेष न करके शुद्धचिन्मात्र के अनुभवन करनेको सामायिक या साम्य कहते हैं। यह नामादि निक्षेपोंकी अपेक्षासे छह प्रकारका हो सकता है । यथाः नाम सामायिक-शुभाशुभ नामों को सुनकर रागद्वेष न करना। स्थापनासामापिक-जैसा चाहिये वैसे ही प्रमाण से और मनोहरता आदिगुणोंसे युक्त स्थापनामें राग और उससे विपरीत में द्वेष न करना। द्रव्यसामायिक- जो सुवर्णादिरूप था या होनेवाला है उसमें राग और जो मृत्तिकादिरूप होगया या होजायगा उसमें देषन कर समदर्शी मना। क्षेत्रसामायिक-सुगंधि फलफूलोंसे पूर्ण वन उपवन और कटीली ककरीली आदि भूमिमें रागद्वेष न करना कालसामायिक-वसन्त और ग्रीष्म प्रभृति ऋतुओं में दिन या रात्रिमें तथा शुक्लपक्ष या कृष्णपक्षमें एवं | प्रातः काल और सायंकाल आदि किसी भी मनोज्ञामनोज्ञ समयमें रागद्वेष न कर समता धारण करना। भावसायिक-जीवमात्रके विषयमें दुर्भावनाओंको छोड कर मैत्रीभाव धारण करना। नामसामायिकादि शन्दोंका अर्थ जैसा कुछ ऊपर लिखागया है उसके सिवाय और मीनीचे लिखे म. जब हो सकता है, उस अर्थका भी यहां संग्रह करलेना । यह बात इस श्लोकमें दिये हुए अपिशब्दके द्वारा सूचित की गई। यथा:- जाति द्रव्य गुण क्रिया आदिकी अपेक्षा न काके "सामायिक " ऐसी किसीकी संज्ञा खदेनेतो अथवा " सामायिक" इस शब्द मात्रको भी नामसामायिक कहते हैं। जो व्यक्ति सामायिकरूप परिणत है उसके गुणोंका उसके सदृश या विसदृश आकार रखनेपाले किसी भिन्न पदार्थमें आरोप करना इसको स्थापना सामायिक कहते हैं। जो सामायिकरूप परिण। हो चुका हो या आगे चलकर तद्रूप परिणत होनेवाला हो उसको द्रव्यसामायिक कहते हैं। यह दो प्रकारका होता है-एक आगमद्रव्यसामायिक दूसरा नो आगमद्रव्यसामायिक । सामा यिकके स्वरूपका निरूपण करनेवाले शास्त्रके ज्ञाता किंतु उस विषय अनुपयुक्त आत्माको आगम द्रव्यसामायिक कहते हैं। अध्याय ७४२
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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