SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगार ६१ अध्याय १ सम्बन्धी ऐश्वर्य-संपत्ति धारक हैं उनमें भी प्रधानताको प्रकाशित करता हुआ अर्थात् महर्द्धिकता के साथ जिन भगवान्की पूजन करता हुआ तथा इन्द्राणी आदि देवियोंके साथ विलास करता हुआ चिरकाल तक जो स्वर्गीय राज्यको भोगता है वह सब धर्मका ही उपकार है I इन्द्रपदके बाद चक्रवर्तिपद भी पुण्यविशेषसे ही प्राप्त होता है । यह बात दिखाते हैं: उच्चगत्रमभिप्रकाश्य शुभकद्दिक्चक्रवालं करै —, राक्रामन् कमलाभिनन्दिभिरनुग्रथ्नन् रथाङ्गोत्सवम् । दूरोत्सारितराजमण्डलरुचिः सेव्यो मरुत्खेचरै — सिन्धोस्तनुते प्रतापमतुलं पुण्यानुगुण्यादिनः ॥ ४१ ॥ जिस प्रकार सूर्य उच्च गोत्र - निषध नामके कुलाचलको प्रकाशित करके कमलाभिनंदी — कमलोंको आनंदित करनेवाले अपने कर-किरणोंके द्वारा प्रतिपक्षियोंसे पूर्ण दिङ्मंडलको आक्रान्त-अभिभूत - व्याप्त करलेता है, अथवा दिशाओंको व्याप्त करता तथा प्रजाको शुभ-कल्याण उत्पन्न करता है। उसी प्रकार स्वामी- चक्रवर्ती भी उच्च गोत्र - इक्ष्वाकु आदि वंशको प्रकाशित कर प्रतिपक्षियोंसे भरे हुए दिङ्मंडलको कमलाभिनंदी - लक्ष्मीको आनंदित करनेवाले या बढानेवाले करों-हाथोंसे आक्रान्त कर अथवा दिशाओं को अभिभूत कर प्रजाकेलिये कल्याणोंको उत्पन्न करता है । जिस प्रकार सूर्य रथांगोत्सव - चकवा चकवीकी प्रीतिको बढाता है उसी प्रकार चक्रवर्त्ती भी रथांगोत्सव - चक्ररत्न के बढे हुए तेजको सर्वत्र फैला देता है । जिस प्रकार सूर्य राजमण्डल - चंद्रमण्डलकी कांति को दवा देता है उसी प्रकार चक्रवर्त्ती भी राजमंडल - - राजाओंके प्रताप या इच्छाओं को दूर करदेता - नष्ट करदेता है। जिस प्रकार सूर्यकी ज्योतिषी देव सेवा करते हैं उसी प्रकार चक्रवर्त्तीकी देव व विद्याधर सेवा करते हैं । इस प्रकार पूर्वकृत पुण्यके प्रतापसे चक्रवर्ती सूर्यके समान अपने अनुपम प्रतापको सिंधुपर्यंत प्रसारित करदेता
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy