SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 728
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगार ज्ञात अथवा निश्चित विषयके मनमें पुनः पुनः विचार करनेको अनुप्रेक्षा कहते हैं। इसकी भी समीचीन अध्ययन करना ही कहना चाहिये । क्योंकि शब्दार्थका पाठ यहांपर भी होता है। अन्तर इतना ही है कि वाचनामें पहिर्जल्स होता है, किन्तु अनुप्रेक्षामें अनर्जल हुआ करता है। .. स्वाध्यायके आम्नाय और धर्मोपदेश नामके चौथे पांचवें भेदका स्वरूप बताते हैं:-- आम्नायो घोषशुद्धं यद्वृत्तस्य परिवर्तनम् । धर्मोपदेशः स्याद्धर्मकथा सस्तुतिमङ्गला ॥ ८७ ॥ पढे हुए ग्रन्थके शीघ्रता या विलंब आदि दोपोंसे रहित पुनः पुनः उच्चारण करनेको आम्नाय कहते हैं। स्तुति देववन्दना तथा मङ्गल-नमस्कार आशीः शान्ति आदि विषयों के साथ धर्मके निरूपण करनेको धर्मोपदेश कहते हैं। भावार्थ:--भगवान्का स्तोत्र पाठ करना, उनको नमस्कारादि करना, या अन्य त्रेसठ शलाका पुरुषोंकिचरित्रका निरूपण करना, अथवा किसी भी धार्मिक विषय का व्यारव्यानादि करना, इत्यादि सब धर्मोपदेश है। ____धर्मकथाके चार भेदोंका स्वरूप बताते हैं: आक्षेपणी स्वमतसंग्रही समेक्षी, विक्षेपणी कुमतनिग्रहणीं यथाईम् । संवेजनी प्रथयितुं सुकृतानुभावं, निवेदनीं वदतु धर्मकथां विरक्त्यै ॥ ८८ ।। धर्मकथा चार प्रकारकी होती है-आक्षेपणी, विक्षपणी, संवेजनी और निवेदनी । जिसके द्वारा अपने मतका संग्रह-अनेकान्त सिद्धान्तका यथारोग्य समथेन हो उसको आक्षेपणी, और इसी प्रकार-यथायोग्य जिसके द्वारा क्षणिकैकान्त प्रभृति मिथ्यामतोंका निग्रह-खंडन हो उसको विक्षेपणी, तथा जिसके द्वारा पुण्यके फल स्वरूप संपत्तिको यथायोग्य प्रकाशित किया जाय उसको संवैजनी, एवं जिसको सुनकर संसार शरीर और भोगोंसे वैराग्य उत्पन्न होसके ऐसी निरूपणाको निदनी कहते हैं। अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy