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________________ अनगार ५७ गुरुओंकी सेवा करके संचित किये हुए समीचीन आन्वीक्षिकी आदि विद्याओंके वैभवोंसे उन उन विद्याओंके धारण करनेवाले विद्वानोंके ऊपर प्रकाशमान, शत्रुओंकी लक्ष्मीसे स्वयं बंधा हुआ होनेपर भी अपने बाहुपाशसे बलपूर्वक रणमें वैरियोंको बांधनेवाला, आज्ञा और ऐश्वर्य-अनुल्लंघ्य शासनको प्राप्त करनेवाला और जिसका यशरूपी चंद्रमा तीनो लोकमें सदा प्रकाशमान रहता है, ऐसा पुत्र बडे भारी भाग्यसे प्राप्त हुआ करता है। जो कि देह मात्रसे ही पृथक् -भिन्न माना जाता और एक होनेपर भी लाखोंकी बरावर समझा जाता है। गुणकृत सौन्दर्य धारण करनेवाली कन्याएं भी पुण्यसे ही प्राप्त होती हैं। यह बात दृष्टान्तद्वारा स्पष्ट करते हैं: कन्यारत्नसूजां पुरोऽभवदिह द्रोणस्य धात्रीपतेः, ' पुण्यं येन जगत्प्रतीतमहिमा सृष्टा विशल्यात्मजा। कूरं राक्षसचक्रिणा प्रणिहितां द्राग्लक्ष्मणस्योरसः, शक्ति प्रास्य यया स विश्वशरणं रामो विशल्यीकृतः ॥३६॥ . संसारमें प्रभावशाली कन्यारत्नके उत्पन्न करनेवालोंमें सबसे अधिक पुण्य द्रोण महाराजका समझना चाहिये कि जिनके विशल्या नामकी वह कन्या उत्पन्न हुई कि जिसका माहात्म्य समस्त संसारमें प्रसिद्ध है । और जिसने राक्षसोंके चक्रवर्ती रावणके द्वारा अत्यंत निर्दयताके साथ मारी गई शक्तिको लक्ष्मणके हृदयमेंसे जरासी देरमें-दर्शनमात्रसे ही दूर कर विश्वमात्रके शरणभूत रामचंद्रको शल्यरहित कर दिया। जिसने लक्ष्मणके हृद यमेंस शक्तिको ही नहीं निकाला किंतु रामचंद्रजीके हृदयमेंसे उस शल्यको भी निकाल बाहर किया जो कि अपने अत्यंत प्रिय छोटे भाई लक्ष्मणके मरणके विषयमें लगी हुई थी। । । । भावार्थः- रामचंद्र सरीखोंको शल्यरहित करनेवाली कन्याएं भी अद्भुत रन हैं जो कि पुण्यशालि। योंके यहां ही उत्पन्न हो सकती हैं। .... अन००८ अध्याय JHENNISTENDANCHAMALANSHEROEN
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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