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________________ बचार संसारसे उद्विग्न और धर्माचार्यादि गुरुजनोंकी चिरकालतक सेवा करनेसे अत्यंत दृढताको प्राप्त होगया है ब्रह्मचर्य और शास्त्रज्ञान तथा कषायोंका उपशम जिसका ऐसा जो साधु दर्शनावशुद्धि आदि कारणों में अनुराग रख कर गुरुओंकी आज्ञाके अनुसार पृथ्वीपर एकाकी विहार करते हुए कांटा खोबरा कंकड पत्थर या और किसी नुकीली चीजके छिदजाने आदिका कष्ट होते हुह भी पूर्वानुभूत पालकी पीनस रथ बैली हाथी घोडा आदि याप्य यान या वाहन आदि किसी भी सबारीका स्मरण नहीं करता उसके चर्यापरीषहका विजय समझना चाहिये। निषद्या परीषहके विजयका स्वरूप बताते हैं - भीष्मश्मशानादिशिलातलादी, विद्यादिनाऽजन्यगदायुदीर्णम् । शक्तोपि भङ्क्तुं स्थिरमङ्गिपीडां, त्यक्तुं निषद्यासहनः समास्ते ॥९॥ भयंकर श्मशान प्रेतवन अन्यगृह या गिरिकंदरादिकमें शिलातल अथवा किसी स्थंडिल प्रदेशपर ध्यान करते समय विद्या मंत्र अथवा औषधि आदिके निमित्तसे उद्भूत हुए उपसर्ग या किसी भी तरहकी व्याधिको नष्ट करनेकेलिये स्वयं समर्थ रहते हुए भी जो साधु स्थिर होकर समाधि' वीरासनादिक कायोत्सर्गसे चलायमान नहीं होता उसको ही निषद्यापरिषहका सहन करनेवाला समझना चाहिये । शय्यापरीषहको जीतनेका उपदेश देते हैं: शय्यापरीषहसहोऽस्मृतहंसतूल,प्रायोऽविषादमचलन्नियमान्मुहूर्तम् । ' अध्याय
SR No.600388
Book TitleAnagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pt Khoobchand Pt
PublisherNatharang Gandhi
Publication Year
Total Pages950
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size29 MB
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